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________________ आषाढ़ वदि ६ को फलौदी में चन्दन कुमारी ने तेजश्री जी के पास दीक्षा लेकर सुलोचनाश्री नाम प्राप्त किया। आप अपने २१ साध्वियों के साथ चेन्नइ में विचरण कर रही हैं। इनकी प्रमुख शिष्या साध्वी सुलक्षणाश्री हैं। (ङ) श्री सुलक्षणाश्री-इनका जन्म सं० २०१० श्रावण सुदि ५ को फलौदी में हुआ। इनका जन्म नाम सुशीला था। आप सुलोचनाश्री जी की लघु भगिनी हैं और वि०सं० २०२८ फाल्गुन सुदि ३ को सुलोचनाश्री से ही दीक्षा ग्रहण कर सुलक्षणाश्री नाम प्राप्त किया। आप निरन्तर साधना में संलग्न रहती हैं। ((४) प्रवर्तिनी श्री वल्लभश्री __ प्रवर्तिनी श्री प्रेमश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् साध्वी समुदाय का नेतृत्व श्री वल्लभश्रीजी के कन्धों पर आया, प्रवर्तिनी बनीं। इनका जन्म संवत् १९५१ पौष वदि ७ को लोहावट में हुआ था। पारख गोत्रीय सूरजमल जी और गोगा देवी इनके पिता-माता थे। लोहावट निवासी पारख गोत्रीय मुकुन्दचन्द जी-कस्तूर देवी की सुपुत्री जड़ावबाई का जन्म १९२८ श्रावण शुक्ला तीज को हुआ था। जड़ावबाई का विवाह लक्ष्मीचन्द जी चोपड़ा के साथ हुआ था। बारह वर्ष पश्चात् ही जड़ावबाई विधवा हो चुकी थीं। जड़ावबाई वल्लभश्रीजी की सगी बुआ लगती थीं। __संवत् १९६१ मिगसर सुदि पंचमी को बुआ-भतीजी दोनों की दीक्षा महातपस्वी श्री छगनसागर जी महाराज के हाथों से हुई। यह जोड़ी सिंहश्रीजी महाराज की शिष्या बनी। ज्ञानश्री बड़ी थीं और वल्लभश्रीजी छोटी, संवत् १९९६ वैशाख सुदि १३ को ज्ञानश्रीजी का फलौदी में स्वर्गवास हो गया। यही कारण है कि प्रवर्तिनी देवश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् प्रवर्तिनी पद प्रेमश्रीजी को प्राप्त हुआ और उनके स्वर्गवास के पश्चात् प्रवर्तिनी पद संवत् २०१० शरद् पूर्णिमा के दिन छोटी सादड़ी में वल्लभश्रीजी को प्राप्त हुआ। वल्लभश्रीजी प्रौढ़ विदुषी थीं, उपदेश देने में पटु थीं अपने प्रभावशाली प्रवचनों से अनेक विशिष्ट व्यक्तियों को प्रतिबोध देकर अहिंसक बनाया था। जंघाबल क्षीण होने पर छः वर्ष तक अमलनेर में रहीं। विक्रम संवत् २०१८ फाल्गुन सुदि चतुर्दशी को आपका स्वर्गवास हुआ। इनकी शिष्या-प्रशिष्याओं में लगभग ५० अभी विद्यमान हैं। आपने लगभग २० पुस्तकों का लेखन, सम्पादन व प्रकाशन करवाया था। (५) प्रवर्तिनी श्री प्रमोदश्री श्री शिवश्रीजी महाराज की एक शिष्या विमल श्रीजी थीं। विमलश्रीजी के संबंध में कोई परिचय प्राप्त नहीं होता है। फलौदी निवासी सूरजमल जी गोलेछा इनके पिता थे। विक्रम संवत् १९५५ कार्तिक सुदि पंचमी को इनका जन्म हुआ। जन्म नाम लक्ष्मी था। लक्ष्मी की माता का नाम जेठीबाई था। लक्ष्मी की २१/२ वर्ष की अवस्था में ही फलौदी निवासी श्री लालचन्द (४२२) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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