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जी बुरड़ एवं माता का नाम घूड़ीदेवी था। संवत् १९७६ मिगसर सुदि ५ को आपने श्री वल्लभश्री जी महाराज से दीक्षा ग्रहण की। वि०सं० २०४० वैशाख शुक्ल २ को आपको प्रवर्तिनी पद प्राप्त हुआ। आपका स्वर्गवास वि०सं० २०४५ जेठ सुदि सप्तमी को अमलनेर नामक स्थान पर हुआ।
(७) प्रवर्तिनी श्री हेमश्री )
फलौदी निवासी गोलेछा गोत्रीय श्री जमुनालाल जी एवं श्रीमती सुगन देवी के यहाँ इनका जन्म सं० १९६२ आश्विन सुदि २ को हुआ। इनका जन्म नाम कोला कुमारी था। वि०सं० १९८० ज्येष्ठ सुदि ५ को फलौदी में प्रवर्तिनी श्री वललभश्री जी के पास दीक्षा ग्रहण कर साध्वी हेमश्री नाम प्राप्त किया। आप विदुषी साध्वी थीं। प्रवर्तिनी श्री जिनश्री जी के स्वर्गवास के पश्चात् आपको प्रवर्तिनी पद संवत् २०४६ मिगसर वदि पंचमी को सैधवा में प्रदान किया गया। इनका स्वर्गवास संवत् २०४६ वैसाख वदि १३ को उज्जैन में हुआ।
___ वर्तमान समय में महत्तरा पद विभूषिता श्री मनोहरश्री जी और प्रवर्तिनी पद विभूषिता श्री विद्वान्श्री जी श्री शिवश्री जी महाराज के समुदाय का नेतृत्त्व संभाल रही हैं। आप दोनों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :
(८) महत्तरा श्री मनोहरश्री
आप प्रवर्तिनी श्री शिवश्री जी के समुदाय की पूर्व प्रवर्तिनी श्री वल्लभश्री जी की प्रशिष्या एवं श्री गुप्तिश्री की शिष्या हैं। इनका जन्म वि०सं० १९७९ माघ सुदि ५ को फलौदी में हुआ था। ये राखेचा गोत्रीय रावतमल जी और जीयोदेवी की पुत्री थीं। बचपन का नाम पार्वती कुमारी था। वि०सं० १९९१ में माघ सुदि १३ को लोहावट में दीक्षा प्राप्त कर मनोहरश्री नाम प्राप्त किया। आपने छत्तीसगढ़ अंचल को खरतरगच्छ का केन्द्र बनाने में बहुत उद्योग किया। आप सरल स्वभावी एवं मिलनसार हैं। आपका व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली है। समुदाय में ज्ञान-अनुभव एवं संयम में वयोवृद्ध होने के कारण आपको महत्तरा पद से विभूषित किया गया। आपश्री की शिष्याओं की संख्या ३१ के लगभग हैं जो अच्छी व्याख्यात्री हैं। शारीरिक अस्वस्थता होने के कारण आप नागपुर में ही स्थिरवास कर रही हैं।
(९) प्रवर्तिनी श्री विद्वान् श्री)
इनका जन्म वि०सं० १९७८ कार्तिक वदि १५ (दीपावली) को लोहावट में हुआ। पारेख गोत्रीय सम्पतलाल जी इनके पिता और झमकूबाई इनकी माता थीं। बचपन का नाम बिदामी कुमारी
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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