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श्री मणिप्रभाश्री
जयपुर निवासी छाजेड़ गोत्रीय श्री अनन्तमल जी संतोषबाईके घर सं० १९९६ भाद्रपद शुक्ला ११ को इनका जन्म हुआ। आपका बाल्यावस्था का नाम मुन्नाकुमारी था। सं० २०१३ फाल्गुन शुक्ला १० को टोंक में प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्री जी के पास आपने दीक्षा ग्रहण कर मणिप्रभाश्री नाम प्राप्त किया। आप प्रसिद्ध व्याख्यात्री हैं। आपका उपदेश अत्यन्त सरल और लोकप्रिय रहा है। आपके व्याख्यान में प्रतिदिन दूर-दूर से श्रोतागण आते हैं। आपके उपदेश से जलगाँव, अमरावती आदि विभिन्न स्थानों पर कई नई दादावाड़ियों का निर्माण हुआ है। आप विदुषी एवं प्रभाविका हैं। अपनी ११ शिष्याओं के साथ आपने २०५९ का चातुर्मास धमतरी में किया। आपकी विदुषी शिष्या हेमप्रज्ञाश्री शोध प्रबन्ध लिखकर डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर चुकी हैं।
श्री शशिप्रभाश्री श्री पुण्यश्री जी म० की परम्परा में प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्री जी महाराज के पश्चात् प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री जी बनी थी। उनकी प्रमुख शिष्याओं में श्री शशिप्रभाश्री हैं। इनका परिचय इस प्रकार है
इनका जन्म वि०सं० २००१ भाद्रपद वदि १५ को फलौदी में हुआ था। इनके माता-पिता गोलेछा गोत्रीय श्री ताराचन्द जी एवं बालाबाई थे। साध्वी सज्जनश्री जी के उपदेश से प्रबुद्ध होकर सं० २०१४ मार्गसिर वदि ६ को ब्यावर में दीक्षा ग्रहण कर किरणकुमारी से शशिप्रभाश्री बनीं। आप उच्च अध्ययन कर व्याकरणशास्त्री आदि कई उपाधियाँ प्राप्त कर चुकी हैं। आप अच्छी विदुषी और व्याख्यात्री हैं। आपके प्रयत्नों से ही स्वर्गीया श्री सज्जनश्री जी म० के समाधि स्थान को भव्य स्वरूप प्राप्त हुआ है। आपकी एक शिष्या सौम्यगुणाश्री ने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। आपका सं० २०५९ का चातुर्मास मालेगांव में था।
महत्तरा पदविभूषिता स्वर्गीया श्री चम्पाश्री जी म०सा० के साध्वी मंडल में प्रमुख हैं-श्री सूर्यप्रभाश्री और श्री विमलप्रभाश्री।
श्री सूर्यप्रभाश्री
इनका जन्म वि०सं० २००३ वैशाख शुक्ल ५ को फलौदी में हुआ था। मालू गोत्रीय श्री ज्ञानचन्द जी एवं तेजा देवी आपके माता-पिता थे। बचपन का नाम सुशीला कुमारी था। सं० २०२२ मार्गसिर सुदि १० को फलौदी में चम्पाश्री जी से दीक्षा ग्रहण कर सूर्यप्रभाश्री नाम प्राप्त किया। आपने व्याकरण, काव्य, कोश, छन्द एवं जैन शास्त्रों का अच्छा अध्ययन किया है। उदारता और मिलनसारिता आपके प्रमुख गुण हैं। आप अपने १२ शिष्याओं के साथ मालपुरा प्रतिष्ठा महोत्सव में सम्मिलित हुई थीं।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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