SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रुद्रपल्लीय शाखा द्वारा निर्मित समस्त साहित्य से भी इस बात की पुष्टि होती है। खरतरगच्छ की परम्परा के अतिरिक्त अन्य कोई भी परम्परा जिनेश्वरसूरि से सम्बद्ध नहीं है। अतः विद्वानों की यह धारणा भी उपयुक्त एवं संगत नहीं है कि जिनवल्लभसूरि अभयदेव के शिष्य नहीं थे। खरतरगच्छ इतिहास लेखन के साधन जयसोमोपाध्याय गुरुपर्वक्रम, समयसुन्दरोपाध्याय खरतर-गुरु-पट्टावली और महोपाध्याय क्षमाकल्याण खरतरगच्छ पट्टावली, सूरि-परम्परा प्रशस्तियाँ, ग्रंथ-रचना प्रशस्तियाँ, ग्रंथ-लेखन प्रशस्तियाँ, शिलालेखमूर्तिलेखों आदि साधनों से ही खरतरगच्छ के आचार्यों के सम्बन्ध में हमें जानकारी प्राप्त होती रहती थी। महोपाध्याय क्षमाकल्याण कृत खरतरगच्छ पट्टावली का आधार सब से अधिक रहा है। इस पट्टावली का भी प्रकाशन सर्वप्रथम सम्वत् १९८७ में स्वर्गीय श्री पूर्णचन्दजी नाहर के द्वारा हुआ। क्षमाकल्याणोपाध्याय रचित खरतरगच्छ पट्टावली की रचना वि०सं० १८३० में हुई है। यह पट्टावली श्रवण परम्परा पर आधारित है। ८, ९ शताब्दी पूर्व के आचार्यों के वृत्तान्त एवं घटनाओं में कुछ भूल हो, यह स्वाभाविक है। जैन-साहित्य के प्रौढ़ मनीषी श्री अगरचन्दजी श्री भंवरलालजी नाहटा खरतरगच्छ परम्परा के असाधारण विद्वान् थे। उनकी निरन्तर खोज से अनेकों ऐसे रास - कवि पल्ह रचित जिनदत्तसूरि स्तुतिः, कवि सोममूर्ति गणि कृत श्री जिनेश्वरसूरि संयमश्री विवाह वर्णन रास, श्री जिनपतिसूरि पंचाशिका, श्री जिनेश्वरसूरि चतुःसप्ततिका विवेकसमुद्र गणि कृत श्री जिनप्रबोधसूरि चतुःसप्ततिका, तरुणप्रभाचार्य कृत श्री जिनकुशलसूरि चहुत्तरी, श्री तरुणप्रभाचार्य कृत श्री जिनलब्धिसूरि चहुत्तरी, कवि ज्ञानकलश कृत श्री जिनोदयसूरि पट्टाभिषेक रास, उपाध्याय मेरुनन्दन गणि कृत श्री जिनोदयसूरि विवाहलउ, कवि सुमतिरंग कृत श्री कीर्तिरत्नसूरि (उत्पत्ति) छन्द, वेगड खरतरगच्छ गुर्वावली, खरतरगच्छ पिप्पलक शाखा गुरु पट्टावली चउपइ, श्री जिनशिवचंदसूरि रास आदि ग्रंथ प्राप्त हुए, जो कि तत्कालीन आचार्यों के समय विद्वान् श्रमणों या भक्तों द्वारा रचित हैं। उन्होंने उन ऐतिहासिक कृतियों की शोध के दौरान प्रेस कॉपी तैयार की और कुछ कृतियाँ ऐतिहासिक जैन-काव्य संग्रह में प्रकाशित भी कीं, कुछ कृतियाँ साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित की और कुछ कृतियाँ अभी तक अप्रकाशित उनके संग्रह में सुरक्षित हैं। इनके द्वारा प्रकाशित कृतियों से खरतरगच्छ इतिहास पर नया प्रकाश पड़ता है। शोध-खोज के दौरान उन्हें एक असाधारण ऐतिहासिक अमर कृति भी प्राप्त हुई जिसका नाम है - 'खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावली'। इसकी रचना सम्वत् १३०५ में जिनपालोपाध्याय ने की थी। उसके पश्चात् आचार्यों का ऐतिहासिक जीवन-चरित्र सम्वत् १३९५ तक का तत्कालीन किसी विद्वान् मुनि ने लिखा है। इस कृति का प्रारम्भ वर्धमानसूरि से लेकर जिनपद्मसूरि के विद्यमान तक का है। इस रचना (३६) स्वकथ्य Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy