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________________ वि०सं० १३४८ चैत्र वदि ६ को बीजापुर में मुक्तिचन्द्रिका तथा इसी वर्ष वैशाख सुदि ६ को पालनपुर में अमृतश्री को साध्वी दीक्षा प्रदान की गई। वि०सं० १३५१ माघ वदि ५ को पालनपुर में ही हेमलता को साध्वी दीक्षा दी गई। वि०सं० १३५४ ज्येष्ठ वदि १० को जावालिपुर में आचार्यश्री ने जयसुन्दरी को दीक्षा देकर श्रमणीसंघ में सम्मिलित किया। वि०सं० १३६६ ज्येष्ठ वदि १२ को आचार्य जिनचन्द्रसूरि शत्रुजय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा पर निकले। इस यात्रा में आपके साथ प्रवर्तिनी रत्नश्री गणिनी आदि ५ साध्वियाँ तथा कुछ मुनि भी थे। तीर्थ यात्रा पूर्ण कर आप भीमपल्ली पधारे जहाँ दृढ़धर्मा और व्रतधर्मा को दो अन्य व्यक्तियों के साथ क्षुल्लिका दीक्षा प्रदान की। इसी अवसर पर गणिनी प्रियदर्शना को प्रवर्तिनी पद तथा गणिनी रत्नमंजरी को महत्तरा पद प्रदान किया। वि०सं० १३६९ मार्गशीर्ष वदि ६ को आपने पाटण में गणिनी केवलप्रभा को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया। वि०सं० १३७१ फाल्गुन सुदि ११ को भीमपल्ली में प्रियधर्मा, यशोलक्ष्मी और धर्मलक्ष्मी को भागवती दीक्षा प्रदान की गई। इसी वर्ष ज्येष्ठ वदि १० को जावालिपुर में पुष्पलक्ष्मी, ज्ञानलक्ष्मी, कनकलक्ष्मी और मतिलक्ष्मी ने प्रव्रज्या ली। प्राकृत भाषामय अंजनासुन्दरीचरित (रचनाकाल वि०सं० १४०७) की रचयित्री और प्राकृत भाषा की एकमात्र लेखिका साध्वी गुणसमृद्धि महत्तरा आप की शिष्या थीं। वि०सं० १३७५ माघ सुदि १२ को नागौर में एक भव्य समारोह में शीर्षसमृद्धि, दुर्लभसमृद्धि और भुवनसमृद्धि को साध्वी दीक्षा तथा गणिनी धर्ममाला एवं गणिनी पुण्यसुन्दरी को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया गया। इसी अवसर पर आचार्यश्री ने पं० कुशलकीर्ति को अपना उत्तराधिकारी (पट्टधर) घोषित कर उन्हें वाचनाचार्य पद दिया।२ संवत् १३७६ आषाढ़ सुदि ९ को ६५ वर्ष की आयु में १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, पृ० ६० २. वही, पृ० ६१ ३. वही, पृ० ६२ ४. वही, पृ० ६२ ५. वही, पृ० ६३ ६. वही, पृ० ६४ ७. वही, पृ० ६४ ८. वही, पृ० ६४ ९. वही, पृ० ६४ १०. सिरिजेसलमेरपुरे विक्कमचउदसहसतुत्तरे वरिसे। वीरजिणजम्मदिवसे कियमंजणसुन्दरीचरियं ॥ ५०३ ॥ जो आसायण कुणई अणंतसंसारु भमइ सो जीवो। जो आसायण रक्खइ सो पामइ सासयं ठाणं॥ ५०४ ॥ इति श्रीअंजणासुन्दरीमहासतीकथानकं समाप्तम्। कुतिरियं श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यणीश्रीगुणसमृद्धिमहत्तरायाः॥ छ। 'श्री जैसलमेर दुर्गस्थ जैन ताड़पत्रीय ग्रन्थ भण्डार सूचीपत्र' संपा०-मुनि पुण्यविजयजी, अहमदाबाद, १९७२ ई०, क्रमांक-१२७८, पृ० २८१-२८२ ११. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ६५ १२.वही, पृ० ६५ संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (४०५) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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