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वि०सं० १३३२ ज्येष्ठ वदि प्रतिपदा शुक्रवार को जावालिपुर में ही लब्धिमाला और पुण्यमाला को साध्वीदीक्षा प्रदान की गई। वि०सं० १३३३ माघ वदि १३ को आचार्यश्री ने गणिनी कुशलश्री को प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित किया।
वि०सं० १३३४ चैत्र वदि ५ को आचार्यश्री शत्रुजय तीर्थ की यात्रा पर गए। इस यात्रा में उनके साथ २७ मुनि तथा प्रवर्तिनी कल्याणऋद्धि आदि १५ साध्वियाँ भी थीं। शत्रुजय तीर्थ पर ही आचार्य श्री ने ज्येष्ठ वदि ७ को भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा के समक्ष पुष्पमाला, यशोमाला, धर्ममाला और लक्ष्मीमाला को साध्वी दीक्षा प्रदान की।
वि०सं० १३३४ मार्गशीर्ष सुदि १२ को जालौर में गणिनी रत्नश्री को आचार्य जिनप्रबोधसूरि ने प्रवर्तिनी पद प्रदान किया। वि०सं० १३४० ज्येष्ठ वदि ४ को जावालिपुर में ही आपने कुमुदलक्ष्मी
और भुवनलक्ष्मी की दीक्षा प्रदान की। अगले दिन अर्थात् ज्येष्ठ वदि ५ को आपने साध्वी चन्दनश्री को महत्तरा पद प्रदान किया।
वि०सं० १३४१ ज्येष्ठ सुदि ४ को आचार्यश्री के वरदहस्त से जैसलमेर में पुण्यसुन्दरी, रत्नसुन्दरी, भुवनसुन्दरी और हर्षसुन्दरी को साध्वी दीक्षा प्राप्त हुई।
इसी वर्ष फाल्गुन वदि ११ को आचार्यश्री ने जैसलमेर में ही धर्मप्रभा और हेमप्रभा को उनकी अल्पायु के कारण साध्वी दीक्षा न देकर क्षुल्लिका दीक्षा दी। वि०सं० १३४१ वैशाख सुदि ३ अक्षय तृतीया को आपने जिनचन्द्रसूरि को ही अपना पट्टधर घोषित कर वैशाख सुदि ११ को देवलोक प्रयाण किया।
कलिकालकेवली आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने भी अनेक मुमुक्षु महिलाओं को साध्वी दीक्षा प्रदान कर खरतरगच्छीय श्रमणीसंघ के गौरव में वृद्धि की।
आपके वरदहस्त से वि०सं० १३४२ वैशाख सुदि १० को जावालिपुर में जयमंजरी, रत्नमंजरी और शालमंजरी को क्षुल्लिका दीक्षा तथा गणिनी बुद्धिसमृद्धि को प्रवर्तिनी पद प्रदान किया गया। इस दीक्षा महोत्सव में प्रीतिचन्द और सुखकीर्ति को भी क्षुल्लक दीक्षा दी गई।११
वि०सं० १३४५ आषाढ़ सुदि ३ को जावालिपुर में ही चारित्रलक्ष्मी को साध्वी दीक्षा दी गई।१२ इसी नगरी में वि०सं० १३४६ फाल्गुन सुदि ८ को रत्नश्री एवं वि०सं० १३४७ ज्येष्ठ वदि ७ को मुक्तिलक्ष्मी और युक्तिलक्ष्मी को आचार्यश्री के वरदहस्त से साध्वी दीक्षा प्राप्त हुई।१३ वि०सं० १३४७ मार्गशीर्ष सुदि ६ को पालनपुर में आपने साधु-साध्वियों को बड़ी दीक्षा प्रदान की।४
१. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, पृ० ५५ ४. वही, पृ० ५५ ७. वही, पृ० ५८ १०. वही, पृ० ५९ १३. वही, पृ० ५९
२. वही, पृ० ५५ ५. वही, पृ० ५६ ८. वही, पृ० ५८ ११. वही, पृ० ५९ १४. वही, पृ० ६०
३. वही, पृ० ५५ ६. वही, पृ० ५८ ९. वही, पृ० ५८ १२.वही, पृ० ५९
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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