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________________ आचार्यश्री ने ऋषभनाथ, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ के नवनिर्मित जिनालयों में प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। वि०सं० १२९१ वैशाख सुदि १० को जावालिपुर में शीलसुन्दरी और चन्दनसुन्दरी ने प्रव्रज्या ली। वि०सं० १३०९ मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को मुक्तिसुन्दरी को साध्वी दीक्षा दी गई। वि०सं० १३१३ फाल्गुन सुदि चतुर्दशी को जावालिपुर में जयलक्ष्मी, कल्याणनिधि, प्रमोदलक्ष्मी और गच्छवृद्धि इन चार नारियों को श्रमणी दीक्षा दी गई। वि०सं० १३१५ आषाढ़ सुदि १० को पालनपुर में बुद्धिसमृद्धि, ऋद्धिसमृद्धि, ऋद्धिसुन्दरी और रत्नसुन्दरी को आचार्यश्री द्वारा साध्वी दीक्षा दी गई। वि०सं० १३१६ माघ सुदि को जालौर में आचार्यश्री ने धर्मसुन्दरी गणिनी को प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित किया। वि०सं० १३१९ माघ वदि पंचमी को विजयश्री तथा वि०सं० १३२१ फाल्गुन सुदि २ को चित्तसमाधि एवं शांतिसमाधि को पालनपुर में आचार्यश्री के हाथों साध्वी दीक्षा प्रदान की गई। विक्रमपुर में वि०सं० १३२२ माघ सुदि चतुर्दशी को मुक्तिवल्लभा, नेमिवल्लभा, मंगलनिधि और प्रियदर्शन तथा वि०सं० १३२३ वैशाख सुदि ६ को वीरसुन्दरी की प्रव्रज्या हुई। इसी वर्ष विक्रमपुर में ही मार्गशीर्ष सुदि पंचमी को विनयसिद्धि और आगमसिद्धि को साध्वी दीक्षा दी गई। वि०सं० १३२४ मार्गशीर्ष वदि २ शनिवार को जावालिपुर में अनन्तश्री, व्रतलक्ष्मी, एकलक्ष्मी और प्रधानलक्ष्मी तथा वि०सं० १३२५ वैशाख सुदि १० को पद्मावती ने भागवती दीक्षा अंगीकार की।१० वि०सं० १३२६ में आचार्यश्री ने श्रेष्ठिवर्ग की प्रार्थना पर २३ साधुओं तथा लक्ष्मीनिधि महत्तरा आदि १३ साध्वियों के साथ शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की।१ वि०सं० १३२८ ज्येष्ठ वदि चतुर्थी को जावालिपुर में हेमप्रभा को साध्वी दीक्षा तथा वि०सं० १३३० वैशाख वदि ६ को कल्याणऋद्धि गणिनी को महत्तरा पद दिया गया।२ वि०सं० १३३१ में आचार्य जिनेश्वरसूरि (द्वितीय)का स्वर्गवास हुआ।१३ आचार्य जिनेश्वरसूरि के स्वर्गारोहण के पश्चात् वि०सं० १३३१ फाल्गुन वदि ८ को आचार्य जिनप्रबोधसूरि ने खरतरगच्छ का नायकत्व प्राप्त किया। आपके वरदहस्त से अनेक मुमुक्षु महिलाओं ने दीक्षा प्राप्त की, जिसका विवरण इस प्रकार है ___ आचार्यश्री ने वि०सं० १३३१ फाल्गुन सुदि ५ को केवलप्रभा, हर्षप्रभा, जयप्रभा, यशप्रभा इन चार महिलाओं को दीक्षा प्रदान कर श्रमणीसंघ में सम्मिलित किया। दीक्षा महोत्सव जावालिपुर में सम्पन्न हुआ।४ १. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, पृ० ४९ ४. वही, पृ० ५१ ७. वही, पृ० ५२ १०. वही, पृ० ५२ १३. वही, पृ० ५४ २. वही, पृ० ४९ ५. वही, पृ० ५१ ८. वही, पृ० ५२ ११. वही, पृ० ५२ १४. वही, पृ० ५४ ३. वही, पृ० ५० ६. वही, पृ० ५१ ९. वही, पृ० ५२ १२.वही, पृ० ५२ संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (४०३) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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