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________________ पूर्वक वैशाख सुदि ६ के दिन गणीश्वर के पास विधिवत् दीक्षा ली। आपका नाम भद्रमुनि रखा गया। सं० १९९२ का चातुर्मास रत्नमुनि का लायजा, लब्धिमुनि और भावमुनि का अंजार व प्रेममुनि एवं भद्रमुनि का मांडवी में हुआ। चातुर्मास के बाद मांडवी आकर गुरु महाराज ने श्री भद्रमुनि को बड़ी दीक्षा दी। तूंबड़ी के पटेल शामजी भाई के संघ सहित पंच तीर्थी-यात्रा की। सुथरी में घृतकल्लोल पार्श्वनाथ के समक्ष संघपति माला शामजी भाई को पहनाई गयी। सं० १९९३ में मांडवी चातुर्मास कर मुंद्रा में पधारे और रामश्री को दीक्षित किया। वहीं इनकी बड़ी दीक्षा हुई और कल्याण श्री की शिष्या प्रसिद्ध की गई। वहाँ से रायण में सं० १९९४ का चातुर्मास कर सिद्धाचलजी पधारे। इस समय आपके साथ १० साधु थे। प्रेममुनि के भगवतीसूत्र का योगोद्वहन और नन्दनमुनि की बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई। कल्याणभुवन में कल्पसूत्र के योग कराये, पन्नवणासूत्र बाँचा, प्रचुर तपश्चर्या हुई। पूजा-प्रभावना, स्वधर्मीवात्सल्यादि हुए। मुर्शिदाबाद निवासी राजा विजयसिंह जी की माता सुगुण कुमारी की ओर से उपधान तप हुआ। मार्गशीर्ष सुदि ५ को गणिवर्य श्री रत्नमुनि के हाथ से मालारोपण हुआ। दूसरे दिन बुद्धिमुनि और प्रेममुनि को गणि पद से विभूषित किया गया। जावरा के सेठ जड़ावचंद पगारिया की ओर से उद्यापनोत्सव हुआ। सं० १९९६ का चातुर्मास अहमदाबाद हुआ। फिर बड़ौदा पधार कर गणिवर्य ने नेमिनाथ जिनालय के पास गुरु-मन्दिर में दादासाहब श्री जिनदत्तसूरि जी की मूर्ति-पादुका आदि की प्रतिष्ठा बड़े ही ठाठ-बाठ से की। वहाँ से बम्बई की ओर विहार कर दहाणु पधारे। वहाँ विराजमान श्री जिनऋद्धिसूरि जी से मिलना हुआ। बम्बई पधार कर संघ की विनती से आचार्यश्री ने आपको आचार्य पद से विभूषित करना निश्चय किया। बम्बई में विविध प्रकार से उत्सव होने लगे, सं० १९९७ आषाढ़ सुदि ७ के दिन सूरिजी ने आपको आचार्य पद दिया। सं० १९९७ का चातुर्मास पायधुनी में, श्री जिनऋद्धिसूरि का दादर और लब्धिमुनि का घाटकोपर और प्रेममुनि का लालवाड़ी में हुआ। विविध उत्सव हुए। चरितनायक के उपदेश से श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार की स्थापना हुई। अपने भ्राता पुणसी भाई की प्रार्थना से सं० १९९८ का चातुर्मास लालवाड़ी में किया। वेलजी भाई को दीक्षा देकर मेघमुनि नाम से प्रसिद्ध किया। ___सं० १९९९ में श्री जिनरत्नसूरि ने दस साधुओं के साथ सूरत चातुर्मास किया। फिर बड़ौदा पधार कर उ० लब्धिमुनि के शिष्य मेघमुनि व गुलाबमुनि के शिष्य रत्नाकरमुनि को बड़ी दीक्षा दी। सं० २००० का चातुर्मास रतलाम किया, उपधान तप आदि अनेक धर्मकार्य हुए। सेमलियाजी की यात्रा कर महीदपुर पधारे। महीदपुर में राजमुनि जी के भाई चुन्नीलाल जी बाफणा ने मन्दिर निर्माण कराया था। प्रतिष्ठा कार्य बाकी था। अतः खरतरगच्छ संघ को इसका भार सौंपा गया, पर वह लेखपत्र उनकी बहिन के पास रखा। वह तपागच्छ की थी, उसने उन लोगों को दे दिया। कोर्ट से दोनों को मिलकर प्रतिष्ठा करने का आदेश हुआ, पर उन्होंने कब्जा नहीं छोड़ा तो क्लेश बढ़ता देख (३९०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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