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________________ भाई का नाम रत्नमुनि और लधा भाई को लब्धिमुनि नाम से प्रसिद्ध किया। सं० १९५९ का चातुर्मास मंडार में करने के बाद सं० १९६० वैशाख सुदि १० को शिवगंज में पंन्यास श्री यशोमुनि जी के कर-कमलों से बड़ी दीक्षा हुई। सं० १९६० शिवगंज, १९६१ नवाशहर और १९६२ का चातुर्मास पीपाड़ में गुरुवर्य श्री राजमुनि के साथ हुआ। कुचेरा पधारने पर राजमुनि के उपदेश से २५ स्थानकवासी घर मन्दिरमार्गीय बने। श्री रत्नमुनि योगोद्वहन हेतु. पंन्यास जी के पास चाणोद गये। शास्त्राभ्यास सुचारु चल रहा था। इधर श्री मोहनलाल जी महाराज की अस्वस्थता के कारण पंन्यास जी के साथ बम्बई की ओर विहार किया, पर श्रावकों के आग्रह से सूरत जाते हुए मार्ग में ही दहाणु में गुरुदेव के दर्शन हो गए। श्री मोहनलाल जी महाराज १८ शिष्यों के साथ सूरत पधारे, श्री रत्नमुनि उनकी सेवा में दत्तचित्त रहे। फिर उनकी आज्ञा से पंन्यास जी के साथ पालीताणा पधारे। फिर रतलाम आदि में विचरण कर भावमुनि के साथ श्री केशरिया जी पधारे। शरीर अस्वस्थ होने पर भी आपने २१ मास पर्यन्त आयम्बिल तप किया। सं० १९६६ में ग्वालियर में पंन्यास जी ने उत्तराध्ययन व भगवतीसूत्र का योगोद्वहन केशरमुनि जी, भावमुनि व चिमनमुनि के साथ आपको भी करवाया। आप गणि पद से विभूषित हुए। सं० १९६७ का चातुर्मास गुरु महाराज राजमुनि जी के साथ करके सं० १९६८ में महीदपुर पधारे। सं० १९६९ में बम्बई में चातुर्मास किया। फाल्गुन सुदि २ को गुरु महाराज की आज्ञा से बीबड़ोद के श्री पन्नालाल को दीक्षा देकर प्रेममुनि नाम से प्रसिद्ध किया। सं० १९७० का चातुर्मास बम्बई में था, वहाँ श्री जिनयश:सूरि जी महाराज के पावापुरी में स्वर्गस्थ होने के दुःखद समाचार मिले। गणिवर्य रत्नमुनि को जन्मभूमि छोड़े बहुत वर्ष हो गए थे। अतः श्रावक संघ की प्रार्थना से पालीताणा-शत्रुजय की यात्रा करते हुए, कच्छ अंजार होते हुए भद्रेश्वर यात्रा कर लायजा पधारे। यहाँ पूजा, प्रभावना, उद्यापनादि अनेक हुए। सं० १९७१ में बीदड़ा और १९७२ का मांडवी में चातुर्मास किया। नांगलपुर पधारने पर गुरुवर्य राजमुनि जी के स्वर्गवासी होने के समाचार मिले। सं० १९७३ का भुज और १९७४ का लायजा में चातुर्मास हुआ। मांडवी में राजश्री को दीक्षा दी। सं० १९७५ में नवावास दुर्गापुर चौमासा किया। संघ में पड़े हुए दो धड़ों को एक कर शान्ति की। सं० १९७३ में डोसा भाई लालचंद का संघ निकला ही था, फिर भुज से सा० वसनजी वाघजी ने भद्रेश्वर का संघ निकाला। गणिवर्य यात्रा करके अंजार पधारे। इधर सिद्धाचल की यात्रा करते हुए लब्धिमुनि जी आ पहुँचे, उनके साथ फिर भद्रेश्वर पधारे। सं० १९७६ भुज, सं० १९७७ मांडवी चातुर्मास कर जामनगर, सूरत, कतार गाँव, अहमदाबाद, सेरिसा, भोयणीजी, पानसर, तारंगा, कुंभारियाजी, आबू यात्रा कर अणादरा पधारे। लब्धिमुनि, भावमुनि को शिवगंज भेजा और स्वयं प्रेममुनि के साथ मडार चातुर्मास किया। पाली में केशरमुनि जी से मिले। दयाश्री को दीक्षा दी। सं० १९८० का चातुर्मास जैसलमेर किया। किले पर दादा साहब की नवीन देहरी में दोनों दादागुरु की प्रतिष्ठा कराई। सं० १९८१ में फलौदी चातुर्मास किया। ज्ञानश्री जी और वल्लभश्री जी के आग्रह से हेमश्री को दीक्षा दी। लोहावट में श्री गौतम स्वामी जी और चक्रेश्वरी जी की प्रतिष्ठा कर अजमेर पधारे। वहाँ से रतलाम, सेमलिया - (३८८) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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