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________________ ठाणा और बम्बई संघ पंन्यास जी महाराज को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने का विचार करता था पर आप स्वीकार नहीं करते थे। अन्त में सेठ रवजी सोजपाल आदि समस्त श्रीसंघ के आग्रह से सं० १९९५ फाल्गुन सुदि ५ को बड़े भारी समारोह पूर्वक आपको आचार्य पद से अलंकृत किया गया। आप पंन्यास श्री ऋद्धिमुनि जी से श्री जिनयश:सूरि जी महाराज के पट्टधर जैनाचार्य भट्टारक श्री जिनऋद्धिसूरि नाम से प्रसिद्ध हुए। सं० १९९६ में जब आप दहाणु में विराजमान थे तो गणिवर्य रत्नमुनि जी, लब्धिमुनि जी भी आकर मिल गए। आपकी हार्दिक इच्छा थी कि सुयोग्य चारित्र चूडामणि श्री रत्नमुनि को आचार्य पद एवं विद्वद्वर्य लब्धिमुनि को उपाध्याय पद दिया जाय। बम्बई संघ ने भी आचार्यश्री के व्याख्यान में यही मनोरथ प्रकट किया। आचार्य महाराज और संघ की आज्ञा से रत्नमुनि व लब्धिमुनि को पदवी लेने में नि:स्पृह होते हुए भी स्वीकार करना पड़ा। दस दिन पर्यन्त महोत्सव करके श्री रत्नमुनि को आचार्य पद व लब्धिमुनि को उपाध्याय पद से सं० १९९७ आषाढ़ सुदि ७ के दिन अलंकृत किया। तदनन्तर अनेक स्थानों में विचरण करते हुए आप राजस्थान पधारे और जन्मभूमि चुरू के भक्तों के आग्रह से वहाँ सं० २००० का चातुर्मास किया। बीकानेर में उपाध्याय मणिसागर जी के तत्त्वावधान में उपधान तप चल रहा था। मालारोपण के अवसर पर पौष माह में आपश्री बीकानेर पधारे और मणिसागर जी को आचार्य पद से अलंकृत किया। फिर नागौर आदि स्थानों में विचरण कर जीर्णोद्धार, प्रतिष्ठादि द्वारा शासनोन्नति का कार्य करने लगे। अन्त में बम्बई पधार कर बोरीवली में संभवनाथ जिनालय के निर्माण का उपदेश देकर कार्य प्रारम्भ करवाया। सं० २००८ में आपका स्वर्गवास हो गया। महावीर स्वामी के मन्दिर में आपश्री की तदाकार मूर्ति विराजमान की गई। आपका जीवन वृत्तान्त श्री जिनऋद्धिसूरि जीवनप्रभा में (सं० १९९५ में प्रकाशित) द्रष्टव्य है। विद्वत् शिरोमणि उ० लब्धिमुनि जी ने सं० २०१४ में आपका संस्कृत काव्यमय चरित्र कच्छ मांडवी में रचा जो अप्रकाशित है। (४. आचार्य श्री जिनरत्नसरि इनका जन्म लायजा कच्छ में सं० १९३८ में हुआ। आपका जन्म नाम देवजी था। आठ वर्ष की आयु में पाठशाला में प्रविष्ट हो धार्मिक व व्यवहारिक शिक्षा प्राप्त कर, बम्बई में पिताजी की दुकान का काम संभाल कर माता-पिता को सन्तुष्ट किया। देश में आपके विवाह-सगाई की बात चल रही थी और वे उत्सुकतापूर्वक देवजी भाई की राह देख रहे थे। पर इधर बम्बई में श्री मोहनलाल जी महाराज का चातुर्मास होने से देवजी भाई अपने मित्र लधा भाई के साथ प्रतिदिन व्याख्यान सुनने जाते और उनकी अमृतवाणी से दोनों की आत्मा में वैराग्य बीज अंकुरित हो गये। दोनों ने यथावसर पूज्य श्री से दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की। पूज्यश्री ने इन्हें योग्य जान कर अपने शिष्य श्री राजमुनि के पास रेवदर भेजा। सं० १९५८ चैत्र वदि ३ को दीक्षा देकर देवी संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३८७) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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