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________________ के प्रकाशन में आपका परिश्रम और उपदेश मुख्य था। आपने जैनागमों के अतिरिक्त संस्कृत काव्य, अलंकारादि का भी अच्छा अभ्यास किया था। आप इन्दौर निवासी मराठा जाति के थे। सेठ कानमल जी के परिचय में आकर उल्लासपूर्वक कच्छ जाकर श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी से दीक्षा ली। सं० १९७४ माघ सुदि १० को सूरत में गुरु महाराज ने मंगलसागर को दीक्षित कर आपके शिष्य रूप में प्रसिद्ध किया। उस समय सूरत में १८ ठाणे थे, इनका १९वाँ नम्बर था। इन्दौर में प्रवर्तक पद पाकर आपने श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भंडार की स्थापना की। आपके उपदेशों से बालोतरा चौमासा में बहुत से स्थानकवासियों को जिनप्रतिमा के प्रति श्रद्धालु बनाने से, उपधानतपादि द्वारा तथा मिथ्यात्व त्याग, अभक्ष्य त्यागादि में समाज को बड़ा लाभ मिला। जैसलमेर ज्ञान भंडार के जीर्णोद्धार में प्राचीन प्रतियों की नकल व फोटोस्टेट आदि कार्यों में आपका पूर्ण योगदान था। सं० १९९२ में धनवसही में आपके उपदेश से निर्मित दादावाड़ी की प्रतिष्ठा श्री जिनचारित्रसूरि जी द्वारा करवाई गयी। उस समय आप उपाध्याय पद से विभूषित हुए और सुप्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञ और विद्वान् लेखक श्री कान्तिसागर जी की दीक्षा हुई। ग्रन्थ सम्पादनादि कार्य सतत चालू रहा। गुरु महाराज के स्वर्गवास के पश्चात् आपने सूरत, अमलनेर, बम्बई, नागपुर, सिवनी, बालाघाट, गोंदिया आदि में चातुर्मास किए। उपधान तप आदि अनेक धर्मकार्य होते रहे। गोंदिया में पन्द्रह वर्षों से चले आ रहे मन मुटाव को दूर कर सं० १९९९ के माघ में प्रतिष्ठा करवायी। राजनादगाँव में उपधान कराया। रायपुर होकर महासमुन्द चातुर्मास किया। धमतरी पधार कर सं० २००९ के फाल्गुन में अंजनशलाका प्रतिष्ठा, गुरुमूर्ति स्थापना आदि अनेक उत्सव कराये। मुनि श्री कान्तिसागर जी की प्रेरणा से महाकोशल जैन संघ का महत्त्वपूर्ण सम्मेलन हुआ। फिर रायपुर चातुर्मास कर सम्मेतशिखर महातीर्थ की यात्रा करते हुए संघ की विनती से कलकत्ता पधार कर दो चातुर्मास किए। वहाँ से लौटते हुए पटना और वाराणसी में चातुर्मास किए, फिर मिर्जापुर, रीवा होते हुए जबलपुर पधारे। सं० २००७ में वहाँ ध्वजदण्डारोहण, तपश्चर्या के उत्सव हुए। सिवनी होकर सं० २००८ का चातुर्मास राजनांदगाँव किया। आपके उपदेश से नूतन दादावाड़ी का निर्माण होकर प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। वहाँ से सिवनी होकर भोपाल, लश्कर, ग्वालियर चातुर्मास किए। जयपुर चातुर्मास के अनन्तर अजमेर में दादाश्री जिनदत्तसूरि अष्टम शताब्दी के उत्सव में भाग लेकर उदयपुर चातुर्मास किया। फिर गढ़सिवाणा चातुर्मास कर गोगोलाव के जिनालय की प्रतिष्ठा कराई। ___ आपको गुजरात छोड़े बहुत वर्ष हो गए थे अतः अहमदाबाद संघ के आग्रह से वहाँ चातुर्मास कर पालीताणा पधारे। सं० २०१६ में उपधान तप हुआ। गिरिराज पर विमल वसही में दादा साहब की जीर्णोद्धारित देहरियों में प्रतिष्ठा के समय श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ के अधिवेशन व साधु सम्मेलनादि में सबसे मिलना हुआ। पालीताणा जैन भवन में कई चातुर्मास हुए। आपकी प्रेरणा से जैन भवन की भूमि पर गुरु मन्दिर का निर्माण हुआ। दादा साहब व गुरु-मूर्तियों की प्रतिष्ठा हुई। सं० २०२२ में घण्टाकर्ण महावीर की प्रतिष्ठा हुई जिसमें गुरु भक्त केशरिया कंपनी पालनपुर वालों की ओर से ५१ संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३७९) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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