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________________ किलो का महाघण्ट प्रतिष्ठापित किया गया। दादा साहब के चित्र व प्रतिमा आदि साहित्य प्रकाशन होता रहा। वृद्धावस्था के कारण गिरिराज की छाया में ही विराजमान रहे। सं० २०२४ वैशाख सुदि ९ को आपका स्वर्गवास हो गया। मनि श्री कान्तिसागर उपाध्याय सुखसागर जी के लघु शिष्य कान्तिसागर जी सौराष्ट्र जामनगर के जैनेतर कुलोत्पन्न थे। लघुवय में सं० १९९२ में उपाध्याय जी के पास दीक्षित होकर अपनी असाधारण प्रतिभा से अनेक विषयों के पारगामी विद्वान् बने। हिन्दी भाषा पर आपका अच्छा अधिकार था। संस्कृतनिष्ठ प्राञ्जल भाषा में आपके ग्रन्थों का विद्वानों में बड़ा आदर हुआ। खण्डहरों का वैभव और खोज की पगडंडियों दो ग्रन्थ तो भारतीय ज्ञानपीठ जैसी प्रसिद्ध संस्था से प्रकाशित हुए। उत्तरप्रदेश सरकार ने इनकी श्रेष्ठता पर पुरस्कार घोषित किया। पुरातत्त्व और कला के आप अधिकारी विद्वान् थे। जैन धातु प्रतिमा लेख, नगरवर्णनात्मक हिन्दी पद्य संग्रह और आयुर्वेदना अनुभूत प्रयोगो भी अपने विषय के अच्छे ग्रन्थ हैं। नागदा और एकलिंग जी पर आपने महत्त्वपूर्ण बृहद् ग्रन्थ अथक परिश्रम से तैयार किया था जो अप्रकाशित ही रह गया। श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई, पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय जी, डॉ० हंसमुखलाल सांकलिया जैसे अध्यवसायी अन्वेषकों का आपको सत्संग मिला और डॉ० हजारीप्रसाद जी द्विवेदी जैसे विद्वान् ने 'खोज की पगडंडियाँ' नामक ग्रन्थ की प्रस्तावना लिखी। ___ जयपुर संघ के अनुरोध से आप पालीताणा से जयपुर पधारे। पर्युषण व्याख्यानादि में श्रम अधिक पड़ने से शरीर क्षीण होने लगा। ता० २८ सितम्बर १९६९ को हृदय गति अवरुद्ध होने से आपका स्वर्गवास हो गया। सं० १९८४ के आस-पास श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि जी म० के समुदाय में लगभग ७० साध्वियाँ थीं किन्तु आज इस समुदाय में एक भी साधु विद्यमान नहीं है और कुछ ५-७ साध्वियाँ शेष हैं। (३८०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 . अरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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