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________________ (अनेक स्तवन-सज्झायें), गिरनार पूजा आदि की रचना की। सूरत से श्री जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फंड से अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन करवाया। __ आपकी प्रतिमाएँ शचुंजय-तलहटी में स्थित धनवसही दादावाड़ी में, जैन भवन की दादावाड़ी जिनालय में, रायपुर मन्दिर और बीकानेर में हैं। आपका उत्कृष्ट चारित्र, विद्वत्ता और संघ पर उपकार अजोड़ था। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि जी ने स्वहस्त से अनेक शिष्य-प्रशिष्यों को दीक्षित किया था। खोज करने पर हमें केवल २५ के नाम प्राप्त हुए हैं, जो इस प्रकार हैं :१. तिलोक मुनि, २. आनन्द मुनि, ३. जयसागरसूरि, ४. उ० सुखसागर, ५. रायसागर, ६. उदयसागर, ७. वर्धमानसागर ८. रत्नसागर, ९. विवेकसागर, १०. कीर्तिसागर, ११. रामसागर, १२. तिलोकसागर, १३. उम्मेदसागर, १४. मतिसागर, १५. प्रमोदसागर, १६. पद्मसागर, १७. हेमसागर, १८. हरखसागर, १९. मंगलसागर, २०. शोभनसागर, २१. चतुरसागर, २२. प्रेमसागर, २३. शुभसागर, २४. रतिसागर, २५. जीतसागर। (२. आचार्य श्री जिनजयसागरसूरि आपका जन्म सं० १९४३ में हुआ था। आपने दीक्षा १९५६, उपाध्याय पद सं० १९७६ व आचार्य पद सं० १९९० में स्वयं गुरु महाराज के कर-कमलों से प्राप्त किया था। आपके लघु भ्राता वाचक राजसागर जी व छोटी बहिन ने भी दीक्षा ली जिनका नाम हेतश्री जी था। आपने श्री जिनदत्तसूरि चरित्र दो भाग व गणधरसार्धशतक भाषान्तर एवं श्रीपालचरित्र का अनुवाद आदि कई पुस्तकें लिखीं। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि चरित्र महाकाव्य का संस्कृत में निर्माण किया। आप दृढ़, संयमी और ठाम चौविहार करते थे। शास्त्र-सिद्धान्त के इतने प्रौढ़ विद्वान् थे कि बिना शास्त्र हाथ में लिए शृंखलाबद्ध व्याख्यान देते थे। आपने गढ़ सिवाणा, मोकलसर आदि में चातुर्मास किए। आपके ग्रन्थों का संग्रह सिवाणा की दादावाड़ी में है। बीकानेर की भयंकर गर्मी में भी आपने पानी लेना स्वीकार नहीं किया और सं० २००३ में बीकानेर में समाधिपूर्वक देह त्याग कर दिया। रेल दादाजी-बीकानेर में आपके चरण विद्यमान हैं। (३. उपाध्याय श्री सुखसागर श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि जी के शिष्यों में इनका स्थान बड़ा महत्त्वपूर्ण है। आप प्रसिद्ध वक्ता थे। बुलन्द आवाज़ और हजारों श्लोक कण्ठस्थ थे। श्री जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फंड से पचासों ग्रन्थों (३७८) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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