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________________ आपने अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठाएँ करवाईं। दादावाड़ियों का निर्माण करवाया। अनेकों उपधान तप करवाये । नाकोड़ा तीर्थ जैसे क्षेत्र में खरतरगच्छ का डंका बजवाया। आपकी निश्रा में बाड़मेर से शत्रुजय का जो पैदल यात्री संघ निकला था, वह वास्तव में अवर्णनीय था। इस यात्रा में एक हजार व्यक्ति थे। लगभग १०० वर्ष के इतिहास में खरतरगच्छ के लिए यह पहला अवसर था कि इतनी दूरी का और इतने समूह का एक विशाल यात्री संघ निकला। आपने कई संस्थायें भी निर्मित की। खरतरगच्छ की वृद्धि के लिए आप सतत प्रयत्नशील रहे। १३ जून १९८२ को जयपुर में श्रीसंघ ने आपको आचार्य पद से विभूषित किया, तभी से आप जिनकान्तिसागरसूरि के नाम से विख्यात हुए। अपने दीर्घ जीवनकाल में आपश्री ने देश के विभिन्न भागों में चातुर्मास किया। आपने आर्वी, भद्रावती, नाकोड़ा, कुल्पाक, सम्मेतशिखर आदि विभिन्न तीर्थों पर उपधान तप सम्पन्न कराये। इसके अतिरिक्त आर्वी, जलगांव, कुल्पाक, आहोर, सम्मेतशिखर, पावापुरी, उदयपुर, जोधपुर, बाड़मेर आदि तीर्थ स्थानों पर प्रतिष्ठायें सम्पन्न करवायीं। संवत् २०४२ मार्गशीर्ष वदि ७ को माण्डवला में अकस्मात् हृदय गति रुक जाने से आपका स्वर्गवास हो गया। आपकी स्मृति में मांडवला में सुप्रसिद्ध जहाजमन्दिर का निर्माण हुआ है जो आज तीर्थ के रूप में विख्यात हो चुका है। इसमें इनकी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गयी है। आपके शिष्यों में उपाध्याय मणिप्रभसागर जी, मनोज्ञसागर जी, मुक्तिप्रभसागर जी, सुयशप्रभसागर जी, गणि महिमाप्रभसागर जी, ललितप्रभसागर जी, चन्द्रप्रभसागर जी आदि विद्यमान हैं। उपाध्याय मणिप्रभसागर जी अच्छे विद्वान् हैं, व्यवहारपटु हैं, कार्य दक्ष हैं और खरतरगच्छ की सेवा में संलग्न हैं। ((१७) आचार्य श्री जिनमहोदयसागरसूरि सुथरी (कच्छ) के निवासी ओसवालज्ञातीय श्री कुंवर जी भाई और श्रीमती खेतदेवी इनके माता-पिता थे। १८८७ भाद्रपद शुक्ला २ को सुथरी में इनका जन्म हुआ था और बचपन का इनका नाम नवीनचन्द्र था। वि०सं० २०१५१ में ज्येष्ठ सुदि १० को मेड़ता रोड़ (फलौदी पार्श्वनाथ तीर्थ) में दीक्षा ग्रहण कर आचार्य जिनआनन्दसागरसूरि के शिष्य बने थे। विक्रम संवत् २०४३ माघ सुदि छठ बुधवार को पावापुरी में श्री जिनउदयसागरसूरि जी महाराज ने उपाध्याय पद प्रदान किया था। २५ अप्रैल १९९६ विक्रम संवत् २०५३ वैशाख सुदि ७ गुरुवार को अजमेर में श्रीसंघ ने आचार्य पद प्रदान किया था। आपकी निश्रा में तीन यात्री संघ, तीन उपधान तप और अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठा तथा आपके हाथों से अनेक छोटी-बड़ी दीक्षाएँ हुईं। आप सरल स्वभावी थे। २७ मई २००० को मलकापुर (महाराष्ट्र) में आपका अकस्मात् ही स्वर्गवास हो गया। १. डॉक्टर विद्युत्प्रभाश्री जी संपादित परिचय-पुस्तिका में दीक्षा संवत् २०१५ का उल्लेख है और आनन्द स्वाध्याय संग्रह पुस्तक में चित्र परिचय देते हुए दीक्षा संवत् २०१४ लिखा हुआ है। (३७०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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