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________________ के नाम से प्रसिद्ध हुए और तभी से इस सुखसागर जी महाराज के समुदाय के गणनायक पद का भार संभाला और समुदाय का नेतृत्व किया। आप गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओं के अच्छे जानकार थे। आपका विचरण क्षेत्र मुख्यत: राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार, बंगाल और उत्तरप्रदेश रहा है। आपने अनेक स्थलों पर प्रतिष्ठा, अंजनशलाका आदि महोत्सव कराये हैं। आपके नेतृत्व में कई उद्यापन भी हुए हैं। कई स्थानों पर नई दादावाड़ियों का निर्माण और कई का जीर्णोद्धार भी आपने करवाया है। आपने कई पुस्तकों का पुनर्प्रकाशन भी करवाया है जिसमें पंचप्रतिक्रमण सूत्र सविधि आदि मुख्य हैं। आप सरल स्वभावी थे। आप के शिष्यों श्री पूर्णानन्दसागर जी और पीयूषसागर जी गणि मुख्य हैं। आपका स्वर्गवास वि०सं० २०५२ कार्तिक सुदि ५ को हुआ। (१६) आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरि । सन् १९८२ में जयपुर में जो दूसरे आचार्य बने वे थे जिनकान्तिसागरसूरि । इनका जन्म विक्रम संवत् १९६८ माघ वदि एकादशी को रतनगढ़ में हुआ था। आपके पिता का नाम मुक्तिमल जी सिंघी था और माता का नाम था सोहनदेवी। आपका जन्म नाम था तेजकरण/तोलाराम। रतनगढ़ में तेरापंथी संप्रदाय का प्राचुर्य एवं प्रभाव होने के कारण इनके माता-पिता तेरापंथी परम्परा को ही मानते थे। तत्कालीन तेरापंथी समुदाय के अष्टम आचार्य कालूगणि के पास इन्होंने अपने पिता के साथ ही (तेजकरण) दस वर्ष की बाल्यावस्था में ही संवत् १९७८ में दीक्षा ग्रहण की। तेरापंथ में दीक्षित होने के पश्चात् इन्होंने शास्त्र अध्ययन किया। प्रखर बुद्धि तो थी ही, साथ ही चिंतन भी प्रौढ़ था। फलतः मूर्तिपूजा, मुखवस्त्रिका, दया, दान आदि के सम्बन्ध में तेरापंथ संप्रदाय की मान्यताएँ इन्हें अशास्त्रीय लगीं और तेरापंथ संप्रदाय का त्याग कर संवत् १९८९ ज्येष्ठ सुदि त्रयोदशी को अनूप शहर में गणनायक हरिसागर जी महाराज (जिनहरिसागरसूरि जी) के करकमलों से भागवती दीक्षा अंगीकार की। तभी से आप मुनि कान्तिसागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। __ आप प्रखर वक्ता थे। आपकी वाणी में ओज़ था। श्रोताओं को मंत्र मुग्ध करने की आप में कला थी। भाषणों में कुरान शरीफ, बाइबल, गीता और जैन साहित्य का पुट देते हुए सुन्दर प्रवचन देते थे। फलतः आपकी ख्याति बढ़ती ही गई। आगम ज्ञान के अतिरिक्त आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, मारवाड़ी का भी अच्छा ज्ञान रखते थे, साथ ही कवि भी थे। हिन्दी और राजस्थानी भाषा में आपने स्तवन साहित्य और रास साहित्य की कई रचनाएँ की हैं, जिनमें से प्रमुख हैं :-अंजना रास, मयणरेहा रास, प्रतिमाबिहार, पैंतीस बोल विवरण, कान्तिविनोद आदि। आपका विचरण क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, हरियाणा, जम्मूकश्मीर, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु रहा। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३६९) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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