SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८) गणाधीश श्री कैलाशसागर I रूण निवासी कटारिया गोत्रीय श्रीमती दाखी देवी और श्री चतुर्भुज जी इनके माता-पिता थे इनका बाल्यकाल का नाम सम्पतराज था । वि०सं० २०१५ आषाढ़ शुक्ला २ को इनकी नागौर में दीक्षा हुई और ये कैलाशसागर जी के नाम से जाने गये। इनके गुरु का नाम आचार्य श्री जिनकवीन्द्रसागरसूरि था । आचार्य जिनमहोदयसागरसूरि जी के स्वर्गवास के पश्चात् श्रीसंघ ने आपको गणाधीश पद से अलंकृत किया। आप सरल स्वभावी और भद्रपरिणामी हैं। वर्तमान में आप खरतरगच्छ के गणाधीश पद का सम्यक् प्रकार से निर्वहन कर रहे हैं । वि०सं० २०५८ माघ सुदि १० को मालपुरा की असाधारण प्रतिष्ठा भी आपके सान्निध्य में हुई थी। उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर लुंकड गोत्रीय श्री पारसमल जी और रोहिणी देवी आपके माता-पिता थे । जन्म वि०सं० २०१६ फाल्गुन सुदि १४ को मोकलसर में इनका जन्म हुआ। आपका जन्म नाम मीठालाल था । सं० २०३० आषाढ़ वदि ७ को पालिताणा में दीक्षा ग्रहण कर ये आचार्य जिनकांतिसागरसूरि के शिष्य बने । इनका दीक्षा नाम मणिप्रभसागर हुआ। इनकी माता रोहिणी देवी और बहन विमला कुमारी ने भी इसी अवसर पर दीक्षा ग्रहण की और क्रमशः रत्नप्रभाश्री और विद्युत्प्रभाश्री नाम प्राप्त किया । दिनांक २४.०६.१९८८ को पादरु नगर में इन्हें गणि पद प्राप्त हुआ और गणाधीश कैलाशसागर जी की अनुज्ञा से दिनांक २६ जनवरी, २००१ वि०सं० २०५७ माघ सुदि २ को गढ़ सिवाणा में उपाध्याय पद प्राप्त किया। गुरु के समान ही ये अच्छे व्याख्याता और ज्योतिष विद्या में निष्णात हैं । लेखक और कवि के रूप में भी प्रसिद्ध हैं । व्यवहारपटुता के कारण आज समाज में आपकी बहुत ख्याति है । पूजायें, जीवनचरित्र, अनुवाद, सम्पादन एवं संग्रह आदि की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके सान्निध्य में साठ से अधिक अंजनशलाका, प्रतिष्ठा एवं दादावाड़ियों का निर्माण हुआ है । इन्हीं के कर-कमलों से ५५ से अधिक लघु और बड़ी दीक्षायें सम्पन्न हो चुकी हैं। मालपुरा में खरतरगच्छ की दृष्टि से वि०सं० २०५८ में असाधारण प्रतिष्ठा महोत्सव आपके संचालकत्व में ही हुआ है। सं० २०५९ का जिनहरिविहार पालीताणा में इनका भव्य एवं यशस्वी चातुर्मास समपन्न हुआ । इस चातुर्मास में आपके सान्निध्य में ६०० श्रद्धालु यात्रियों ने गिरिराज की निन्नाणु यात्रा का लाभ लिया। मंगलकारी उपधान तप हुआ और अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव भी निर्विघ्न हुआ । स्व० आचार्य जिनकांतिसागरसूरि जी की पुण्यस्मृति में माण्डवला में जिस अनुपम जहाजमन्दिर और गुरु मन्दिर की स्थापना हुई है वह इन्हीं के सतत प्रयत्नों का सुफल है एवं गुरु के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप आपके कई शिष्य हैं। आपकी बहन साध्वी डॉ० विद्युत्प्रभाश्री जी अच्छी विदुषी हैं। I संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (३७१) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy