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वे इन्हीं क्षेत्रों में कार्यरत रहे और अपनी साहित्य सेवा के कारण हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति के मानद सम्मान से विभूषित किये गये। वर्तमान में वे साहित्य सेवा तथा खरतरगच्छ के कार्यों में संलग्न हैं तथा साधु-साध्वी वर्ग की आगमिक शिक्षा हेतु उपलब्ध हैं।
(१२) आचार्य श्री जिनानंदसागरसूरि
आप श्री जिनहरिसागरसूरि जी के बड़े गुरुभ्राता गणनायक श्री त्रैलोक्यसागर जी के शिष्य थे। आपका जन्म सं० १९४६ आषाढ़ सुदि १२ सोमवार को सैलाना के कोठारी तेजकरण जी की भार्या केशर देवी की कोख से हुआ। आपका नाम यादवसिंह था। सैलाना स्टेट में आपका परिवार राजमान्य अधिकारी पद पर था। आप समुचित शिक्षा प्राप्त कर, प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्री जी के चातुर्मास में धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर त्यागमय जीवन की ओर आकृष्ट हुए और २२ वर्ष की तरुणावस्था में वि०सं० १९६८ वैशाख सुदि १२ बुधवार को पूज्यवर्य श्री त्रैलोक्यसागर जी के कर-कमलों से दीक्षित हुए। दीवान बहादुर सेठ केशरीसिंह जी बाफना ने धूमधाम से दीक्षोत्सव किया।
आपका हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं पर अच्छा अधिकार था और अपने समय के प्रखर व्याख्याता थे। आपने आगम ग्रन्थों का अनुवाद व कई स्वतंत्र ग्रन्थों की भी हिन्दी में रचना की। भारत के विभिन्न प्रान्तों में विचरण कर आपने अच्छी धर्म प्रभावना की। आपने प्रवर्तिनी वल्लभश्री जी, प्रमोदश्री जी, प्रवर्तिनी विचक्षणश्री जी आदि साध्वियों को प्रवचन शैली सिखायी। आगमसार जैसे विवेचनात्मक ग्रन्थ की रचना की और अपने जीवन काल में ४६ ग्रन्थों का प्रकाशन कराया। सैलाना नरेश आपके मित्र और सहपाठी थे अतः उनके आग्रह से वहाँ पर श्री आनन्द ज्ञान मंदिर की स्थापना की। श्री जिनहरिसागरसूरि जी का स्वर्गवास हो जाने पर सं० २००६ माघ सुदि ५ को प्रतापगढ़ (राजस्थान) में खरतरगच्छ संघ द्वारा आप आचार्य पद से विभूषित हुए।
आप संगठन प्रेमी थे। सं० २००७ में कोटा चातुर्मास के समय दिगम्बराचार्य सूर्यसागर जी, स्थानकवासी आचार्य चौथमल जी और आप एक पाट पर विराजे। तीनों महापुरुषों का एक साथ प्रवचन होने से संगठन को बड़ा बल मिला। सं० २०११ में दादा श्री जिनदत्तसूरि जी अष्टम शताब्दी समारोह अजमेर में मनाया गया। इस समय आपकी अध्यक्षता में साधु-सम्मेलन भी हुआ था। संगठन व्यापक हो इसके लिए अखिल भारतीय श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ की स्थापना हुई। श्री प्रतापमल जी सेठिया उसके प्रथम प्रधानमंत्री हुए। आप श्री ने कई जगह दीक्षाएँ, प्रतिष्ठाएँ, अंजनशलाका, उपधान करवाये और छरी पालित संघ आदि निकलवाए; जिनमें प्रमुख हैं फलौदी से जैसलमेर, इन्दौर से मांडवगढ़, मांडवी से भद्रेश्वर तीर्थ, मांडवी से सुथरी तीर्थ आदि। ___ तीर्थाधिराज सिद्धाचलजी पर मूल दादा की टोंक में दादा श्री जिनदत्तसूरि, श्री जिनकुशलसूरि की चरण पादुकायें अकबर प्रतिबोधक दादा श्री जिनचन्द्रसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित थे, जिनका जीर्णोद्धार
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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