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एक बार आपने स्वप्न में मनोहर वाटिका में बछड़ों के साथ गायों के झुण्ड को विचरते हुए देखा, जिसके फलस्वरूप आपने भविष्य में साध्वी समुदाय का विस्तार होना बतलाया और आपकी यह भविष्य वाणी पूर्णरूप से सत्य सिद्ध हुई। आपने अध्ययन बल से ज्ञान की वृद्धि कर जनसाधारण के सुबोधार्थ जीवाजीव राशि प्रकाश, भाषा कल्पसूत्र, बासठ मार्गणा यंत्र, अष्टक एवं अन्य कई बोल-चाल के ग्रन्थों की रचना की।
इस प्रकार सुविहित मार्ग का पुनरुद्धार व धर्म प्रचार कर, ३६ वर्ष ४ मास १४ दिन निर्मल संयम का पालन कर सं० १९४२ (२३ जनवरी १८८६ ई.) माघ वदि ४ शनि के दिन प्रातः काल फलौदी में अनशन आराधना पूर्वक स्वर्ग सिधारे। आप पुण्यशाली महापुरुष थे। आपकी विद्यमानता में ५ साधु व १४ साध्वियों का समुदाय था, वह क्रमशः बढ़ता ही गया।
वर्तमान में आपने सुविहितमार्ग का पुनरुद्धार किया था, इसी कारण इनका समुदाय सुखसागर जी महाराज के समुदाय के नाम प्रसिद्ध हुआ।
बीसवीं शताब्दी के खरतरगच्छीय विद्वान् ग्रन्थकार व क्रियापात्र योगीराज चिदानन्द जी महाराज ने शिवजीराम जी महाराज से अलग हो कर आप से अजमेर में उपसम्पदा दीक्षा ग्रहण की थी। आप शास्त्र चर्चा में निष्णात थे। आप द्वारा निर्मित साहित्य हैं :१. आत्मभ्रमोच्छेदनभानु, २. दयानन्दकुतर्क तिमिर तरणि, ३. द्रव्यानुभवरत्नाकर, ४. जिनाज्ञाविधिप्रकाश, ५. शुद्धदेवअनुभव-विचार।
((८) गणाधीश श्री भगवानसागर
आप रोहिणी गाँव के जाट जसा जी के पुत्र थे। गणाधीश्वर सुखसागर जी के उपदेश से वैराग्य रंजित होकर फलौदी में प्रथम शिष्य के रूप में आपकी दीक्षा सं० १९२५ में हुई थी। सं० १९४२ में
आपने गणाधीश पद प्राप्त किया। आपके शिष्य महोपाध्याय सुमतिसागर जी, मुनि धनसागर जी, मुनि तेजसागर जी, त्रैलोक्यसागर जी आदि थे। आपने महातपस्वी श्री छगनसागर जी महाराज को उत्तराधिकारी के रूप में अपने भतीजे हरिसिंह (श्री हरिसागर जी) को जो उनके प्रिय थे, योग्य अवस्था में दीक्षित करने की आज्ञा दी। सं० १९५७ ज्येष्ठ वदि १४ को आपका स्वर्गवास हो गया। आपके शासन में ७ मुनिराज एवं ४१ साध्वियाँ हुईं।
महोपाध्याय सुमतिसागर जी के शिष्य श्री जिनमणिसागरसूरि जी और गणाधीश श्री त्रैलोक्यसागर जी के शिष्य वीरपुत्र श्री आनन्दसागरसूरि जी हुए जिनका परिचय आगे दिया है।
((९) गणाधीश श्री छगनसागर
.. आपने फलौदी निवासी गोलेछा सागरमल जी की धर्मपत्नी चंदनबाई की कोख से सं० १८९६ में जन्म लिया, आपका नाम छोगमल जी था। अखैचंद जी झाबक की पुत्री चुन्नी बाई से आपका
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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