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प्रौढ़ रचना है। वि०सं० १४८५ में रचित नेमिनाथमहाकाव्य इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इनके अतिरिक्त संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं में इनके द्वारा रचित कुछ स्तोत्र भी प्राप्त होते हैं।
आपकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर आचार्य जिनभद्रसूरि ने वि०सं० १४९७ माघ सुदि १० को जैसलमेर में आचार्य पद प्रदान कर कीर्तिरत्नसूरि नाम रखा। वि०सं० १५१२ में नाकोड़ा ग्राम के शुष्क तालाब से पार्श्वनाथ की प्रतिमा इन्हें प्राप्त हुई, जिसे इन्होंने वीरमपुर के जिनालय में प्रतिष्ठापित की। साथ ही भैरव देव की भी स्थापना की। आज भी नाकोड़ा तीर्थ में भगवान् पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह के बाहर ही जहाँ एक तरफ भैरव देव विराजमान हैं, वहीं उनके समक्ष संवत् १५३६ की प्रतिष्ठित श्री जिनकीर्तिसूरि की मूर्ति भी विराजमान है। वि०सं० १५१४ में जब जिनभद्रसूरि का निधन हुआ, उस समय इन्होंने जिनचन्द्रसूरि को गच्छनायक के पद पर प्रतिष्ठित किया। वि०सं० १५१८ ज्येष्ठ वदि ५ को वीरमपुर में शान्तिनाथ जिनालय की प्रतिष्ठा के समय जिनचन्द्रसूरि के साथ आप भी उपस्थित रहे।
इन्होंने स्वहस्त से ५१ लोगों को दीक्षा दी जिनमें उपाध्याय लावण्यशील, वाचक क्षान्तिरत्न गणि, वाचक धर्मधीर गणि आदि प्रमुख थे। वाचक क्षान्तिरत्न गणि ही आचार्य बनने पर गुणरत्नसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
वि०सं० १५२५ वैशाख वदि५ को वीरमपुर में कीर्तिरत्नसूरिका निधन हुआ। जिस रात्रि में आचार्यश्री का स्वर्गवास हुआ उस रात्रि में जिन-मन्दिर के दरवाजे स्वत: बन्द हो गये और आचार्य के पुण्यप्रभाव से मन्दिर में स्वत: ही दीप पंक्तियाँ प्रज्ज्वलित हो गईं। जिस स्थान पर इनका दाह संस्कार किया गया था उसी स्थान पर आचार्य के परिवार वालों मालाशाह आदि ने स्तूप बनवाकर वि०सं० १५२५ वैशाख वदि ६ के दिन खरतरगच्छालंकार श्री जिनभद्रसूरि के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। आज यह स्थान नाकोड़ा तीर्थ में श्री कीर्तिरत्नसूरि दादाबाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। पाठक ललितकीर्ति रचित कीर्तिरत्नसूरि गीत के अनुसार केवल वीरमपुर में ही नहीं अपितु आचार्यश्री की स्मृति में महेवा, जोधपुर, राजनगर, आबू और बीकानेर आदि नगरों में छत्री बनवाकर चरण स्थापित किये गये थे।
इस शाखा के मुनिजनों की नामावली इस प्रकार है : १. कीर्तिरत्नसूरि २. उपाध्याय लावण्यशील (सेठ गोत्रीय) ३. वाचक पुण्यधीर गणि (कांकरिया) ४. वाचक ज्ञानकीर्ति गणि (श्रीमाल) ५. वाचक गुणप्रमोद गणि (हुंबड़) ६. वाचक समयकीर्ति गणि (नाहटा) ७. वाचक हर्षकल्लोल
८. विनयकल्लोल ९. उपाध्याय चन्द्रकीर्ति
१०. उपाध्याय सुमतिरंग
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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