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________________ क्षमारंग ↓ रनलाभ + राजकीर्ति विमलतिलक + विमलकीर्ति ↓ विमलचन्द + विजयहर्ष + धर्मवर्द्धन + कीर्तिसुन्दर (३४२) V गंगाराम उ. साधकीर्ति साधुसुन्दर उदयकीर्ति जिनभद्रसूरि + ज्ञानमेरु Jain Education International 2010_04 पद्ममे + मतिवर्द्धन + मेरुतिलक दयाकलश अमर माणिक्य महिमसुन्दर 7 कनकसोम नयमेरु लावण्यरत्न + कुशलसागर लक्ष्मीप्रभ + सोमकलश + मानसिंह युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के समय में साधुकीर्ति की गणना गीतार्थों में होती थी और वे महोपाध्याय भी थे। युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि द्वारा रचित पौषधविधिप्रकरण बृहद् वृत्ति (रचना संवत् १६१७) का इन्होंने संशोधन किया था । सम्राट अकबर की सभा में इन्होंने तपागच्छीय बुद्धिसागरजी को पौषध की चर्चा में निरुत्तर भी किया था । इनकी रचित " सत्रह भेदी पूजा" परम्परा से आज भी खरतरगच्छ में मांगलिक अवसरों पर पढ़ाई जाती है। इनकी निम्न रचनाएँ प्राप्त हैं : रंगकुशल कनकप्रभ सत्रहभेदीपूजा (वि०सं० १६१८), संघपट्टक टीका (वि० सं० १६१९), आषाढभूति प्रबन्धरास (वि०सं० १६२४), मौनएकादशीस्तव (वि०सं० १६२४), गुरुमहत्ता गीत, वाग्भटालङ्कारटीका, विशेषनाममाला, कर्मग्रन्थस्तबक, जीवविचारप्रकरण बालावबोध आदि । धर्मकुशल भुवनसोम + राजसागर वाचक कनकसोम साधुकीर्ति के गुरु भ्राता थे । इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं : - चरित्रपंचकअवचूरि (वि०सं० १६१५), कालकाचार्यकथा (वि०सं० १६३२), गुणस्थानविवरण चौपाई (वि०सं० १६३१), जिनपालित जिनरक्षित रास (वि०सं० १६३२), आषाढभूति धमाल, आर्द्रककुमार धमाल (वि०सं० १६४४), हरिबलसंधि, मंगलकलशरास, हरिकेशी संधि (१६४०) आदि । वाचक कनकसोम के शिष्य कनकप्रभ रचित दसविधियतिधर्मगीत (वि०सं० १६६४ ) और रंगकुशल द्वारा निर्मित अमरसेन- वयरसेन संधि (वि०सं० १६४४), महावीर सत्ताइस भव स्तवन (वि०सं० १६७०) आदि कृतियाँ भी मिलती हैं । For Private & Personal Use Only खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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