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________________ जिनभद्रसूरि पट्टाभिषेक रास (वि०सं० १४७५ के पश्चात् ) के रचनाकार उपा० समयप्रभं जिनभद्रसूरि के ही शिष्य थे । उत्तराध्ययनसूत्र की सर्वार्थसिद्धिवृत्ति के कर्त्ता और कल्पसूत्र की विभिन्न स्वर्णाक्षरी प्रतियों के प्रलेखक के रूप में विख्यात उ० कमलसंयम गणि इन्हीं के आज्ञानुवर्ती थे ' जिनभद्रसूरि के प्रपौत्र शिष्य, शीलचन्द्र के पौत्रशिष्य, रत्नमूर्ति के शिष्य मेरुसुन्दर उपाध्याय प्रखर विद्वान् थे। बालावबोध (भाषा टीका) रचने में इनकी तुलना में कोई अन्य विद्वान् नहीं दिखाई देता है। इनके लगभग २० बालावबोध ग्रन्थ प्राप्त होते हैं । वाग्भटालंकार ( अलंकार शास्त्र), वृत्तरत्नाकर (छंदशास्त्र), योगप्रकाश (योग) और सैद्धान्तिक विषयों के ग्रन्थों पर इन्होंने अजस्त्र लेखनी चलाई है । मेरुसुन्दर उपाध्याय के शिष्य मेरुहर्ष उपाध्याय भी अच्छे विद्वान् थे । इनके द्वारा शीलोपदेश मालाबालावबोध नामक कृति की रचना की गयी । जिनभद्रसूरि, मुनिमेरु आदि ने अपने उपदेशों से सचित्र कल्पसूत्र की अनेकों प्रतियाँ लिखवायीं, जिनमें बहुत सी रौप्याक्षरी और स्वर्णाक्षरी भी हैं । शीलवती चौपाई के रचनाकार देवरत्न भी इसी शाखा के विद्वान् थे । वि०सं० १६०४ में दु:खसुखविपाकसन्धि के रचनाकार धर्ममेरु भी इसी शाखा के चरणलाभ के शिष्य थे । रचना - प्रशस्तियों के आधार पर जिनभद्रसूरि के कतिपय विद्वत शिष्यों का उल्लेख मिलता है :(१) जिनचन्द्रसूरि पट्टधर समयध्वज ज्ञानमंदिर गुणशेखरनयरंग विमलविनय → रायसिंह और धर्ममंदिर। धर्ममंदिर पुण्यकलश जयरंग (जयतसी) त्रिलोकचंद | (२) उपाध्याय कमलसंयम उपाध्याय मुनि मेरु (३) महोपाध्याय सिद्धान्तरुचि उपाध्याय साधुसोम, विजयसोम, अभयसोम । (४) पद्ममेरु - जिनका परिचय अभी दिया गया है। (५) दयाकमल शिवनंदन देवकीर्ति देवरत्न । (६) भानुप्रभ मतिसेन, महिमालाभ, कुशलसिंह । मतिसेन मेघनंदन और दयानंदन । मेघनंदन रत्नाकर । कुशलसिंह चन्द्रवर्धन → जयलाभ । उपाध्याय साधुकीर्त्ति और उनका शिष्य परिवार जिनभद्रसूरि के शिष्य पद्ममेरु की परम्परा में उपाध्याय साधुकीर्ति, वाचक कनकसोम, धर्मवर्द्धन आदि अनेक प्रसिद्ध विद्वान् हुए हैं । ग्रन्थ प्रशस्तियों के आधार से उनकी वंशावली इस प्रकार है : संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (३४१) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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