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________________ समीरमल जी के शिष्य ने अपना सम्पूर्ण संग्रह राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर को भेंट कर दिया। समीरमल जी के शिष्य ने अपना स्वयं का शिष्य होते हुए भी यति भूरामल को दत्तक रूप में स्वीकार किया था। यति भूरामल जी स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त हैं और आज भी विद्यमान हैं। इसी उपशाखा में दूसरे यति पं० पूनमचन्द के पौत्र शिष्य टीकमचन्द्र को जिनचारित्रसूरि ने वि०सं० १९६७ में बीकानेर में दीक्षा प्रदान की थी। इनका जन्म नाम टीकम था। इनका अधिकांश समय रायपुर और महासमुंद में बीता। अपनी निजी सम्पत्ति से इन्होंने रायपुर दादावाड़ी में पद्मावतीपार्श्वनाथ का भव्य मंदिर बनवा कर प्रतिष्ठा करवाई। _ श्री सागरचन्द्रसूरि धर्मरत्नसूरि उ.रत्रकीर्ति वा. पुण्यसमुद्र समयभक्त वा. दयाधर्म पुण्यनन्दि वा. शिवधर्म वा. हर्षहंस वा. रत्नधीर वा. ज्ञानप्रमोद क्षमाप्रमोद विद्याकलश उ. विशालकीर्ति वा. गुणनन्दन वा. हेमहर्ष-क्षेमहर्ष समयमूर्ति वा. अमरमाणिक्य . वा. लक्ष्मीविनय हेमहर्ष विनयचंद 1 मतिरत्न वा. गुणवर्धन ऋद्धिनन्द समर्थ दयाकल्याण पं. दयाकमल स्फुट पत्र के अनुसार आपकी एक शिष्य संतति का उल्लेख प्राप्त होता है, जो निम्न है : सागरचन्द्रसूरिकस्य शिष्य चत्वारो जाता तानि उच्यन्ते-वा० महिमराज गणि तस्य शिष्य वा० दयासागर शि०वा० ज्ञानमन्दिर शि०वा० देवतिलक, वा० सोमसुन्दर बोहित्था गोत्रीय शिष्यौ १. वा० साधुचन्द्रशि० कुलतिलक गणि। २. भावहर्षसूरि वा० चारित्रोदय प्रमुखाः। वा० साधुलाभ भणसाली। वा० चारुधर्म गणि प्रमुखा। समयकलश शि० ४ (सांगानेर धुंभ पो० ५) संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३३७) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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