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१. चारित्रधर्म २. श्रीधर्म ३. कमलतिलक ४. वा० सुखनिधानगणि (१६६७ आ० व० ८ मालपुरा) - १. सकलकीर्ति, २. गुणसेन, ३. सुजसकीर्ति महिमामेरु गणि (१७२७ मि०व० ८ पाली परोक्ष), कल्याणसागर, ज्ञाननिधान गणि (१७६१ रिणी परोक्ष)। पं० ज्ञाननंदन गणि, वा० आणंदधीर गणि, सं० १८०३ पौष वदि ३ दउरां वा० सुखहेमगणि, रै दो शिष्य - वा० भुवनविशालगणि (१८०९ मि०सु० बीकानेर परोक्ष) पं० सुखविलास २, सं० १८०९ मा०व० ७ बीकानेरे मोक्ष पं० फतेचंदजी १८७६ फा०सु० ५ बीकानेर परोक्ष वा० गुणकल्याणगणि रा शिष्य चत्वारो जाताः १. पं० वर्द्धमान, २ पं० कनकमेरु, ३. पं० वीरमऊ, ४. पं० बुद्धिविमल पं० कीर्तिमेरु सं० १८६९ परोक्ष हैदराबाद में मि०व० ७ पं० क्षान्ति विमल वा० मतिसार वा० गुणसार गणि श्री धवलचन्द्रोपाध्याय, हेमहंस श्री ज्ञानसागरोपाध्याय शिष्यौ - वा० विनयहर्ष भणसाली, वा० समयनन्दि श्रीमाली श्री धर्म गणि - युक्तमेरु १. मुनिमेरु, २. मानहर्ष, ३. स्थिरहर्ष, ४. हंसहर्ष, ५. हेमनिधान, रंगवर्द्धन, रंगधीर सकलकीर्ति सं० १६९८ आगरै - मेघविजय - कल्याणविजय - प्रीतिविजय पं० कल्याणसागर रा शिष्य सं० पालनपुर परोक्ष वा० देवधीर - देववल्लभ सं० १७९५ चै० (१७९५ चै०सु० १५ रिणी परोक्ष) पं० हर्षहेम, पं० ध्यानसेन सं० पं० चतुरहर्ष
राजसेन
चारित्रधर्म गणि
क्षमामेरु माणिक्यमेरु
जिनोदय राजसी देवोदय गोकल गुणसेन सं० १७१४ आषाढ़ व० ८ भुज० में परोक्ष वा० यशोलाभ गणि वा० युक्तिसुन्दर गणि उ० शिवनंदन गणि सं० १७८४ आषाढ़ व० ४, तिलकसुन्दर वा० सत्यधीर गणि दिल्ली परोक्ष सं० १८०२ रा०
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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