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चौथी परम्परा :
उ० लक्ष्मीवल्लभ और सोमहर्ष गणि गुरुभ्राता थे। ९. वा० लक्ष्मीसमुद्र - पं० कनकप्रिय→वा० यशसोम→ उ० माणिक्यवल्लभ→ पं० जगविलास गणि।
पं० कनकप्रिय> पं० उदयसोम> पं० क्षमावर्धन→ पं० मुक्तिधर्म→
पं० भक्तिउदय पं० कमलनन्दन। ११. महो० राजसोम - पं० तत्त्ववल्लभ→ पं० प्रीतिविलास'→पं० देवदत्त पं० मेरुकुशल
पं० भुवनभक्ति, मानसिंह→ सूजा। पं० मन्त्रवल्लभ→ वा० जयदत्त→ पं० मुनिरंग→ भक्तिरंग, नयरंग ।
१. प्रीतिविलास→ पं० धर्मसुन्दर→ पं० अमृतसमुद्र, लाभसमुद्र। ___पं० अमृतसमुद्र> पं० विजयविमल। पं० लाभसमुद्र> पं० मुनिसंघ। २. पं० मुनिरंग - भवानी→ माणक। ३. पं० भक्तिरंग→ पं० बुधा। ४. पं० नयरंग→पं० मेघा।
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संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
(३३५)
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