________________
आहोर (मारवाड़) पधारे। वहाँ प्रतिष्ठा निर्विघ्न समाप्त हुई। सं० १९५५ फाल्गुन वदि १३ को आहोर में आपका स्वर्गवास हो गया।
(३. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि)
आपका गृहस्थ नाम रतनलाल था। पिता का नाम था पुरुषोत्तम और माता का नाम था चौथाबाई। जन्म सं० १९३१ पाली नगर में हुआ था। आपका गोत्र वैद मुहता था। आपकी दीक्षा सं० १९५० फाल्गुन वदि २ को हुई थी। दीक्षा नाम रत्नोदय गणि रखा गया। आपश्री जिनमुक्तिसूरि जी के पाटवी शिष्य हुए। श्री जिनमुक्तिसूरि जी महाराज का स्वर्गवास होने पर आपको जयपुर राज एवं श्रीसंघ ने सं० १९५६ वैशाख सुदि १५ को आचार्य पद दिया और जिनचन्द्रसूरि नाम रखा। जयपुर के पंचायती मंदिर में सेठ पूनमचंद जी कोठारी ने एक देहरी बनवाई उसमें प्रतिमा जी स्थापित कर आपने सं० १९५८ में प्रतिष्ठा कराई। सं० १९७६ में बाहड़मेर में श्रीसंघ के बनवाये श्री आदिनाथ स्वामी के मन्दिर की प्रतिष्ठा ज्येष्ठ सुदि ३ के दिन आपके कर-कमलों से हुई।
जयपुर राज्यान्तर्गत बरखेड़ा ग्राम में एक आदीश्वर भगवान् का प्राचीन मंदिर था, परन्तु वह बहुत जीर्ण हो गया था, इसलिए जयपुर श्रीसंघ को उपदेश देकर उसका जीर्णोद्धार करवाया और सं० १९८४ के फाल्गुन सुदि २ को उसकी प्रतिष्ठा बड़े धूमधाम से करवाई।
आपका स्वर्गवास सं० १९९४ भाद्रपद वदि १४ को जयपुर में हुआ। आपका दाह संस्कार स्थानीय मोहनवाड़ी में हुआ जिसके स्मृति-स्वरूप वहाँ चरणपादुका व छत्री बनी हुई है।
४. आचार्य श्री जिनधरणेन्द्रसूरि)
चौहटण (बाड़मेर) निवासी सेठिया गोत्रीय हमीरमल आपके पिता थे। आपका जन्म सं० १९६७ फागुन सुदि २ को हुआ। आपका जन्म नाम गणेशचन्द्र था। आपकी दीक्षा वैशाख सुदि ३ सं० १९८३ में हुई। दीक्षा नाम "धरणेन्द्र" रखा गया। आप संस्कृत साहित्य के शास्त्री रहे। सं० १९८७ में आपको आचार्य पद मिला। अपने समय में ये खरतरगच्छ में वयोवृद्ध एवं दीक्षावृद्ध श्री पूज्य जी महाराज रहे। तत्कालीन जयपुर राज्य से आपको दुशाला एव "ढींगारिया भीम" ग्राम मिला। सं० १९९९ में आपके जैसलमेर पधारने पर महारावल जवाहरसिंह जी (जैसलमेर नरेश) द्वारा स्वागत में हाथी, घोड़ा, तत्कालीन दीवान साहब एवं नगर के प्रमुख गणमान्य नागरिकों द्वारा स्वागत सामेला कराया गया था एवं जैसलमेर राज्य से सम्मान स्वरूप चाँदी की छड़ी, दुशाला एवं रोकड़ भेंट में प्राप्त हुई थी।
इसी प्रकार जोधपुर राज्य में भी आपका परम्परानुसार दुशाला आदि से सत्कार किया गया। आपने फलौदी, बाड़मेर, मद्रास, बम्बई एवं सूरत आदि में चातुर्मास कर शासन की अच्छी प्रभावना
(३२२) Jain Education International 2010_04
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org