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________________ १२. आचार्य श्री जिनविजयसेनसूरि श्री जिनरत्नसूर के पद पर जिनविजयसेनसूरि हुए। इनका जन्म उदयपुर (मेवाड़) के ओसवाल वंश में हुआ। पिता का नाम हरषचंद और माता का नाम रूपा देवी था । छः वर्ष की अवस्था में गणेशलाल जी वैराटी की प्रेरणा से माता-पिता ने इन्हें समर्पित कर दिया। वैराटी जी के यहाँ लालनपालन और यतिवर्य सूर्यमल जी के सान्निध्य से शिक्षा-दीक्षा संपन्न हुई । मूल नाम मोतीलाल था । सं० १९९९ वै० शुक्ला ५ को दीक्षा और दो दिन बाद ही ७ को पदाभिषेक हुआ। श्री जिनविजयसेनसूरि नाम से प्रसिद्ध हुए। अजमेर यात्रा के पश्चात् पहला चौमासा दिल्ली कर चार चातुर्मास जयपुर किया । सं० २००३ आषाढ़ सुदि १० को मालपुरा में ध्वज दण्ड और दादाजी की छत्री की प्रतिष्ठा करवाई | दिनांक ४ दिसम्बर १९५४ को भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु से भेंट कर सम्राट अकबर और जहांगीर आदि द्वारा आपके पूर्वजों को प्रदत्त ऐतिहासिक फरमान पत्र दिखाए। सं० २०१२ फागुन सुदि ५ को श्रीपूज्य जिनधरणेन्द्रसूरि जी और जिनविजयेन्द्रसूरि जी के साथ सम्मिलित प्रयास से अखिल भारतीय जैन यति परिषद् की स्थापना की । आपने कम्पिलपुर तीर्थ में श्री नन्दीवर्द्धनसूरि जी 'उपदेश से बने श्री विमलनाथ जिनालय का जीर्णोद्धार श्री मिठूमल जी के पुत्र जवाहरलाल जी राक्यान के प्रयत्न से चालू कराया और वहाँ चैत्र कृष्णा से मेला, यात्रा महोत्सव आदि प्रारंभ कराये । आपने हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह श्री जिनदत्त सूरि सेवा संघ, अजमेर को समर्पण कर दिया जो इस समय अजमेर दादाबाड़ी में रखा हुआ है। कई वर्ष पूर्व आपके लखनऊ गद्दी से पृथक् हो जाने से इस परम्परा में कोई यति नहीं रहा । संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only 蛋蛋蛋 (३१७) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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