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बाबू रामचन्द्र हजारीमल पर दयार्द्र होकर आपने मंत्र द्वारा मणि-खण्ड मंगवाकर इनको भी प्रदान किया, जिसके प्रभाव से वे समृद्धिशाली और सुखी हुए तथा आपश्री के चरणों में समर्पित होकर जिनरंगसूरि गद्दी के अनुयायी हो गए। अनारकली में अब भी उनका चैत्यालय विद्यमान है। इस प्रकार आप अत्यधिक धर्म प्रभावना करके सं० १९४१ ज्येष्ठ माह में अजीमगंज में स्वर्गवासी हुए।
(११. आचार्य श्री जिनरत्नसूरि
आपका जन्म सं० १९२७ में सोजत में ओसवाल वंश के बोहरा गोत्र में हुआ था। आपके पिता का नाम दीपचंद और माता का नाम तारा देवी था। अजीमगंज में श्रीपूज्यजी का स्वर्गवास हो जाने से श्री संघ ने आपको दीक्षित कर पदारूढ़ करने का निश्चय किया। तदनुसार सं० १९४१ ज्येष्ठ शुक्ला को दीक्षा ग्रहण करा कर दूसरे दिन तृतीया को आचार्य पद प्रदान किया। सं० १९५२ में आपने कलकत्ता में कपूरचंद जौहरी कारित मंदिर में चन्द्रप्रभ भगवान् की वेदी की प्रतिष्ठा कराई। उसी समय राय बद्रीदास के बनवाये हुए मन्दिर के प्रतिष्ठापक अपने दादागुरु श्री जिनकल्याणसूरि जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा और वेदी प्रतिष्ठा भी कराई। सं० १९५६ ज्येष्ठ वदि ३ को जयपुर के श्रीमाल उपाश्रय में नूतन मन्दिर बनवा कर श्री पार्श्वनाथ स्वामी की वेदी प्रतिष्ठा कराई। सं० १९६४ में आपने चिड़ावा (जयपुर) में मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। सं० १९७२ में कलकत्ता में चातुर्मास किया और पोशाल का निर्माण कराया जो अब भी जिनरंगसूरिपोशाल के नाम से ३१ ए, बांसतल्ला लेन, कलकत्ता में भव्य भवन के रूप में विद्यमान है। सं० १९७४ में आपने बहरोड़ गाँव में मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। सं० १९८२ में कलकत्ता के बड़े मन्दिर में इन्द्रचंद जी पारसान के द्रव्य से श्री मुनिसुव्रत स्वामी की वेदी प्रतिष्ठा कराई। सं० १९८६ आषाढ़ सुदि ६ को मोठ की मस्जिद, दिल्ली के समीपस्थ छोटे दादा श्री जिनकुशलसूरि जी के स्थान पर नवीन मन्दिर का निर्माण कराके भूगर्भ से निर्गत श्री नेमिनाथ स्वामी की वेदी प्रतिष्ठा कराई।
सं० १९९० में मेहरौली के समीप बड़े दादागुरु मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि जी के स्थान पर आपने मन्दिर का शिलान्यास कराया। इसकी प्रतिष्ठा आपके स्वर्गवास के पश्चात् यतिवर्य सूर्यमल जी, यतिप्रवर श्री रतनलाल जी आदि ने सं० १९९३ में वैशाख शुक्ला सप्तमी के दिन कराई। इस प्रकार आचार्योचित, निखिल गुणाकर, भाग्यशाली, महाप्रतापी महात्मा श्री जिनरत्नसूरि जी का ५४ वर्ष पर्यन्त आर्चायत्व पालन करके सं० १९९२ वैशाख वदि १४ को दिन के ३ बजे स्वर्गवास हुआ। आपकी समाधि लखनऊ में बनी हुई है।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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