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________________ सं० १९०६ पौष वदि ८ और सं० १९१० फागुन वदि २ में जयपुर की दादावाड़ी में श्री पार्श्वनाथ, श्री महावीर तथा श्री ऋषभदेव की वेदी प्रतिष्ठा एवं दादा श्रीजिनकुशलसूरि के चरणों की प्रतिष्ठा कराई। आपने झुंझनूं में श्री पार्श्वनाथ, शांतिनाथ, ऋषभदेव और महावीर स्वामी की प्रतिमा की वेदी प्रतिष्ठा कराई। महावीर स्वामी की यह प्रतिमा बीसवीं सदी के प्रारम्भ में भूगर्भ से उपलब्ध हुई थी जो सं० ११११ की प्रतिष्ठित थी। ___सं० १८९२ में आपने जल मन्दिर, पावापुरी में श्री गौतम स्वामी और सुधर्मा स्वामी के चरणों की प्रतिष्ठा कराई। आपके काल में श्री रंगसूरिशाखीय यतिनीवर्या महत्तरा विजया के चरण चिह्नों की प्रतिष्ठा उन्हीं की शिष्या श्री रूपविजया जी ने पावापुरी ग्राम मन्दिर में करवाई। सं० १८९५ वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन सांगानेर में आपने आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि जी के चरण चिह्न जो श्री चारित्रोदय के उपदेशानुसार जयपुरीय श्री संघ द्वारा दादाबाड़ी में स्थापित किए गए थे-की प्रतिष्ठा कराई। __ आप श्री के उपदेश से हस्तिनापुर का संघ निकला, जिसमें कई स्थानों के श्रावक-श्राविका संघ सम्मिलित थे। सं० १९१३ में लखनऊ में आपका स्वर्गवास हुआ। जौहरी बाग में अग्नि संस्कार स्थान में भव्य स्तूप बना हुआ है। ८. आचार्य श्री जिनजयशेखरसूरि . आपका जन्म ओसवाल वंश में हुआ था। आपने सं० १९१३ आश्विन सुदि १३ को लखनऊ में पदारूढ़ होकर दादा गुरु श्री जिनकुशलसुरि के चरणों का जीर्णोद्धार करवा कर पुनः प्रतिष्ठा कराई और साथ ही निज गुरु श्री जिननन्दीवर्द्धनसूरि और दादा गुरु श्री जिनकुशलसूरि के स्मारक स्तूप बनवाकर चरणों की प्रतिष्ठा कराई। (९. आचार्य श्री जिनकल्याणसूरि ) आपका जन्म लखनऊ में ओसवाल वंशीय पहलावत गोत्र में हुआ। आपके वंशज आज भी लखनऊ में हैं। आपका मूल नाम कल्याणचन्द्र था। तरुणावस्था में आपकी इच्छा न होने पर भी माता-पिता ने आपका विवाह कर दिया, किन्तु अनुकूल अवसर पाते ही गृहस्थ बंधन की बेड़ी काट कर आप पावापुरी चले गए। वीर भगवान् के सामने स्वमेव चारित्र ग्रहण कर, यति-वेष धारण कर ध्यानावस्थित रहने लगे। इधर श्री जिनजयशेखरसूरि महाराज के स्वर्गारोहण के पश्चात संघ को आचार्य - (३१४) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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