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________________ सज्जनों द्वारा कारित महोत्सव द्वारा दिल्ली प्रान्तान्तर्गत शाहजहानाबाद में आपने दीक्षा ग्रहण की। आचार्य भट्टारक पद प्राप्त कर आप उदयपुर पधारे। राजसभा के सम्मान्य सदस्य और गुरुदेव के अनन्य भक्त बच्छावत मेहता रूपसी की प्रेरणा से तत्कालीन महाराणा जगतसिंह जी बड़े समारोह और राजसी सवारी के साथ आपश्री के दर्शनार्थ पधारे। आपका शास्त्रज्ञान, अद्भुत प्रतिभा तथा सिद्धिजनित चमत्कारों को देखकर महाराणा जी आश्चर्यान्वित हुए और आपश्री को युगप्रधान पद से विभूषित किया। आपने सिद्धाचल आदि अनेक तीर्थों की यात्रा की। पाठक लब्धोदय, लब्धिसागर आदि बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा सेवित गुरुदेव ने देश-विदेश में विचरण करके धर्म का अत्यधिक प्रचार किया, अन्त में दो पहर का अनशन पूर्वक दिल्ली में आपका स्वर्गवास हुआ। (४. आचार्य श्री जिनललितसूरि) आपके पिता का नाम बोथरा गोत्रीय शाह सांवतसी और माता का नाम रूपा देवी था। आपका जन्म नाम लखजी और दीक्षा का नाम ललितसमुद्र था। सं० १७९३ मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया के दिन दिल्ली में गुरुदेव ने स्वयं आचार्य पद प्रदान किया। बोरबड़ी निवासी बोथरा गोत्रीय शाह ताराचंद, फतहचन्द ने बड़े उत्साह और धूमधाम से पद महोत्सव किया। सं० १७९४ मार्गशीर्ष कृष्णा १ को आपने स्वयं अपने सुयोग्य शिष्य अक्षयसमुद्र जी को आचार्यत्व प्रदान कर दिया। आप परम उज्ज्वल क्रियावान, विद्वान् और आडंबर शून्य महात्मा थे। सं० १७९६ फाल्गुन कृष्णा २ को आपका स्वर्गवास हुआ। उस समय भूगर्भ (पाताल) में बाजे-बजने लगे, जिन्हें श्रवण कर जनता ने महाराज श्री के प्रभाव को और अधिक जाना। (५. आचार्य श्री जिनाक्षयसूरि वागस्थल निवासी नावेड़ा गोत्रीय शाह शंभूराम की धर्मपत्नी सरूपा देवी की कुक्षि से आपका जन्म हुआ। जन्म नाम अक्षयचंद और दीक्षा नाम अक्षयसमुद्र था। सं० १७९६ फागुण सुदि २ के दिन बोथरा गोत्रीय राजमंत्री श्री इन्द्रभान कृत महोत्सव द्वारा कृष्णगढ़ में आचार्यत्व प्राप्त हुआ। खरतरगच्छ के श्री जिनचन्द्रसूरि ने आपको सूरि मंत्र दिया। तदनन्तर दिल्ली प्रान्तीय आना ग्राम की ओर विहार किया और क्रमशः अनूपशहर, शाहजहाँपुर आदि नगरों को पवित्र करते हुए श्री वामनाचार्य, आशानंद आदि मुनियों के साथ उदयपुर (मेवाड़) पधारे। देवीदास आदि संघ के प्रधान नेताओं ने बड़ी श्रद्धा और आग्रह से आपका चातुर्मास कराया, जिससे सत्संग, धर्म ध्यान और सदुपदेशों से जनता को अमित लाभ की प्राप्ति हुई। वहाँ से विहार कर पाठक मानविजय, वीरचन्द, प्रेमधीर आदि १. आजकल शाहबाद नाम से प्रसिद्ध है जो गाजियाबाद और शाहदरा के बीच में अवस्थित है। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३११) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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