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संघ ने महोत्सव का आयोजन किया । वहाँ से आप अजमेर पधारे। संघ सहित शत्रुंजयादि तीर्थों की यात्रा करते हुए स्तंभन पार्श्वनाथ के यात्रार्थ खंभात जाने के लिए जहाज पर आरूढ़ हुए। दैवयोग से नीचे का तख्ता फट जाने से जहाज में शनैः शनैः पानी भरने लगा। जहाज के सभी यात्री और श्रावक संघ त्राहि-त्राहि पुकारने लगे। उस समय आप सब को सांत्वना देकर दादा श्री जिनकुशलसूरि जी के ध्यान में तल्लीन हो गए। थोड़ी देर में वहाँ एक अन्य जहाज आकर उपस्थित हो गया जिस पर सब लोग सावधानी से बैठ गए। गुरुदेव की कृपा से निर्विघ्न समुद्र पार होने के पश्चात् वह जहाज अन्तर्धान हो गया। इससे चमत्कृत होकर सब लोग गुरुदेव का जय जयकार करने लगे ।
आप सब शस्त्रों के पारगामी विद्वान् थे । शास्त्रार्थ में अनेक वादियों को पराजित किया था । गुजरात से दिल्ली पधारने पर आज्ञानुवर्ती श्रीसार पाठक ने स्वयं को "महोपाध्याय" पद प्रदान करने की प्रार्थना की, किन्तु आपके अस्वीकार करने पर श्रीसारीयशाखा का पृथक आविर्भाव हुआ। तदनन्तर विहार कर आप आगरा पधारे। सं० १७५८ आषाढ़ शुक्ला ५ को तीन दिन का अनशन कर आषाढ़ शुक्ला सप्तमी को स्वर्ग सिधारे ।
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कवि कमलरत्न ने सं० १७१० में मालपुरा में इन्हें युगप्रधान पद पर स्थापित होना लिखा है (ऐ०जै०का०सं० पृष्ठ २२३)।
२. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि
आप बाफणा गोत्रीय शाह जयतसी की धर्मपत्नी लक्ष्मी देवी की रत्नकुक्षि से उत्पन्न हुए। आपका जन्म नाम क्षेमचन्द्र और दीक्षा नाम क्षेमकीर्ति था । सं० १७५८ श्रावण वदि दशमी के दिन आगरा में रावत, पाठक, श्रीमाल ओसवाल आदि गोत्रीय संघ के प्रमुख सज्जनों द्वारा विहित महोत्सव में आपका पट्टाभिषेक हुआ। मालपुरा निवासी संखवालेचागोत्रीय शाह पंचायणदास के निकाले हुए संघ के साथ श्री शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा करके जोधपुर, मेड़ता, नागौर, अजमेर, चंपावती, सांगानेर, झुंझनू आदि नगरों में क्रमशः विहार करते हुए जोबनेर पधारे और भांडियागोत्रीय शाह मलूकचंद कारित नूतन मन्दिर में चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिष्ठा कराई। सं० १७८३ में पटना में आपने श्री जिनकुशलसूरि जी के चरणों की प्रतिष्ठा कराई। आपने अनेक प्रान्तों में विचरण कर महती धर्म प्रभावना की । दिल्ली में आपका स्वर्गवास हुआ।
३. आचार्य श्री जिनविमलसूरि
श्रीमाल पारसाणगोत्रीय शाह वखतसिंह आपके पिताश्री और मुनिया देवी आपकी माता थीं। आपका जन्म नाम विथीचन्द और दीक्षा नाम विमललाभ हुआ । सं० १७८९ आषाढ़ सुदि २ को संघ के अग्रगण्य श्रीमाल भांडियागोत्रीय श्री वसन्तराय, नारायणदास, भगवतीदास आदि
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड
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