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________________ परम्परा भी आचार्य शाखा में गिनी जाती है। श्रीमद् देवचन्द्र भी पुण्यप्रधान की परम्परा में हुए हैं, अतः इनका भी उल्लेख आचार्य शाखा के अन्तर्गत किया गया है। अठारहवीं शताब्दी के अध्यात्मनिष्ठ विद्वानों में श्रीमद् देवचन्द्र जी का स्थान सबसे ऊँचा है। आज प्रत्येक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन जो मन्दिर में जाकर पूजा करता है, वह जिस स्नात्र पूजा की भावपूर्ण पंक्तियों को गुनगुनाता है उसके रचनाकार श्रीमद् देवचन्द्र जी हैं। इनकी गणना जैन मनीषियों की अग्रिम पंक्ति में होती है। आपने गम्भीर आध्यात्मिक विषयों पर सहज अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है साथ ही साथ सामान्य चर्चा को भी अपनी भावुक भाषा से अध्यात्म की गहराई में ले गए हैं। जैन साहित्य में आज चौबीस तीर्थंकरों पर रची गई चौबीसियों की संख्या सैकड़ों में है परन्तु आज भी आनन्दघन जी तथा देवचन्द्र जी द्वारा रचित चौबीसियाँ भावप्रवणता तथा आध्यात्मिक गहराई की दृष्टि से अनुपम हैं। श्रीमद् देवचन्द्र जी के जन्म सम्बन्धी कथा कवियणकृत देवविलास में प्राप्त होती हैं। उसके अनुसार इनका जन्म बीकानेर के निकट एक ग्राम में हुआ था। इनके माता-पिता लूणियागोत्रीय तुलसीदास और धनदेवी थे। वि०सं० १७४६ में इनका जन्म हुआ और देवचन्द्र नाम रखा गया। वि०सं० १७५६ में जब ये १० वर्ष के थे उस समय राजसागर जी का इनके ग्राम में आगमन हुआ और इनके माता-पिता ने इनकी वैराग्य भावना को देखते हुए इन्हें राजसागर जी को सुपुर्द कर दिया। राजसागर जी ने इन्हें दीक्षा देकर अपने पौत्र शिष्य दीपचन्द्र का शिष्य घोषित कर दिया। वि०सं० १७५९ में आचार्य शाखा के जिनचन्द्रसूरि के वरद हस्त से इनकी दीक्षा हुई और राजविमल नाम रखा किन्तु ये आजीवन इसी नाम से प्रसिद्ध रहे। श्रीमद् देवचन्द्र जी ने अपनी विभिन्न रचनाओं में अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो तालिका के रूप में इस प्रकार है : युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि वाचक पुण्यप्रधान उपा. सुमतिसागर ज्ञानचन्द्र उपा. साधुरंग रंगप्रमोद विनयप्रमोद उपा.राजसागर विनयलाभ उपा.ज्ञानधर्म उपा.दीपचन्द्र उपा. देवचन्द्र मनरूप विजयचन्द्र रायचन्द्र ज्ञानकुशल विमलचन्द्र रूपचन्द्र (३०६) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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