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________________ महोत्सव भी गोलेछा माणकचंद जी ने करवाया था। इसके अनन्तर इसी वर्ष सूरिजी का स्वर्गवास हो गया। आपके पट्टधर श्री जिनहेमसूरि ने सं० १९०१ माघ सुदि १० को नाल में आपके चरण प्रतिष्ठित किए। रेल दादाजी में आपके स्मारक का जीर्णोद्धार सं० १९४५ श्रावण सुदि ७ को हुआ। (९. आचार्य श्री जिनहेमसूरि बीकानेर निवासी बोथरागोत्रीय साह पृथ्वीराज (वच्छराज) के आप पुत्र थे। आपकी माता का नाम प्रभादे (मृगादे) था। सं० १८९७ ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को आप आचार्य पद से सुशोभित हुए। महारानी विक्टोरिया के समय आयोजित सर्वधर्म परिषद् का एक अंग्रेज विद्वान् जैन दर्शन का ज्ञान प्राप्त करने आपके पास आया था, आपकी योग्यता और प्रतिभा से बड़ा सन्तुष्ट हुआ था। ९० वर्ष की आयु पूर्ण कर आप स्वर्गस्थ हुए। सं० १९४५ में आपके स्मृति स्थान पर श्रावण सुदि ७ का लेख है। आपके सं० १९०१ से लेकर १९४२ तक के कई प्रतिष्ठा लेख संप्राप्त हैं। नाल, झज्झू, पन्नी बाई का उपाश्रय (बीकानेर), शान्तिनाथ जिनालय, रेल दादाजी आदि स्थानों के आपके लेख प्रकाशित हैं। १०. आचार्य श्री जिनसिद्धिसूरि) गढ़ सिवाणा निवासी वैद्य मोहतागोत्रीय मंत्रीश्वर श्री सुलतानसिंह जी के आप पुत्र थे जो पूर्व में नागौर में रहते थे। वहीं आपका जन्म हुआ। आपकी माता का नाम चैनादे था। आपका दीक्षा नाम अमृतविमल था। सं० १९४५ में जिनहेमसूरि के स्वर्गवास के बाद आप पाट पर बैठे। आपका आचार्य पदोत्सव बीकानेरीय संघ ने किया। आप एक योग्य विद्वान् थे। सं० १९८३ में आपका स्वर्गवास हुआ। सं० १९६४-१९६७ के प्रतिष्ठा लेख संप्राप्त हैं। सं० २००० में आपके चरण रेल दादाजी में यति नेमिचन्द्र जी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। (११. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि) ये पहले तेरापंथी साधु थे। इनका नाम आसकरण जी था। सं० १९८४ वैशाख वदि १२ को बीकानेर में अक्षयनिधान नाम से दीक्षित हुए। ये अच्छे व्याख्यानदाता थे। नाल दादाजी में साधना करके रतलाम, बम्बई आदि में विचरे। सं० १९८६ में आपने सौभाग्यमल जी को हैदराबाद में सौभाग्यसकल नाम से दीक्षित किया। (१२. आचार्य श्री जिनसोमप्रभसूरि) ये भी आमेट (चार भुजा रोड) के ओसवाल थे, सौभाग्यमल जी नाम था। गुरु जी के स्वर्गवास संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३०१) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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