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________________ आश्विन कृष्णा ५ को जिनविजयसूरि से दीक्षा ग्रहण की। इसी वर्ष आपको आचार्य पद प्राप्त होकर माह वदि द्वितीया को जैसलमेर में भट्टारक पद प्राप्त हुआ। पदोत्सव लोढा गोत्रीय कानजी ने किया था। पश्चात् जैसलमेर से गुजरात होकर पूर्व देशस्थ तीर्थों की यात्रा करते हुए बीकानेर पधारे। सं० १८१९ आषाढ़ वदि ४ ( कार्तिक सुदि १४) को वहीं २७ वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गवासी हुए । सं० १८२१ माघ सुदि १३ को बीकानेर रेल दादाजी में जिनयुक्तिसूरि जी ने आपकी चरण पादुका प्रतिष्ठित की। ६. आचार्य श्री जिनयुक्तिसूरि बोहरागोत्रीय हंसराज की पत्नी लाछल देवी की कोख से सं० १८०३ वैशाख सुदि ५ को आपका जन्म हुआ था। जन्म नाम जीवन था । सं० १८१५ में जिनकीर्तिसूरि से दीक्षा ग्रहण की। सं० १८१९ में गच्छनायक पद प्राप्त किया। बीकानेर में गोलेछों ने पदोत्सव किया । २१ वर्ष की अल्पायु में सं० १८२४ आश्विन कृष्णा १२ को स्वर्गवासी हो गए । ७. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि भग्गु ग्राम निवासी हड़गोत्रीय श्रेष्ठि भागचंद के आप पुत्र थे । आपकी माता का नाम यशोदा था । सं० १८०७ में आपका जन्म हुआ, मूल नाम तेजसी था । सं० १८२४ में आपने आचार्य पद प्राप्त किया। रतलाम में रूपचंद कारित मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई । सं० १८२५ मार्गशीर्ष सुदि ५ को जैसलमेर में गुरु महाराज जिनयुक्तिसूरि के स्तूप की प्रतिष्ठा महारावल मूलराज के राज्य काल में कराई। बीकानेर में शान्तिनाथ देवालय का निर्माण करवाया। आपके विजय राज्य में आचार्यगच्छीय श्रीसंघ ने पं० मलूकचंद जी के उपदेश से पौषधशाला ( उपाश्रय) का निर्माण कराया जिसका शिलालेख सं० १८४५ का लगा हुआ है। सं० १८६१ में मुहणोत रामदास जी निर्मापित रजतमय ह्रींकार यंत्र प्रतिष्ठित किया। आपका स्वर्गवास जैसलमेर में अनशनपूर्वक सं० १८७५ कार्तिक सुदि पूर्णिमा को हुआ। सं० १८७६ में आपके पट्टधर श्री जिनोदयसूरि ने श्रीसंघकारित स्मृतिशाला - स्तूप चरणों की रावल गजसिंह जी के समय में प्रतिष्ठा करवाई । ८. आचार्य श्री जिनोदयसूरि रीहड़गोत्रीय पुण्यपाल की धर्मपत्नी जतनादे की कुक्षि से आप अवतरित हुए । सं० १८७५ में आचार्य जिनचन्द्रसूरि के पट्ट पर विराजे । सं० १८९७ वैशाख सुदि ६ को बीकानेरस्थ शान्तिनाथ चैत्य की विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करवाई। शिलालेख के अनुसार यह जिनालय खरतराचार्य गच्छ के श्रीसंघ ने बनवाया था और प्रतिमाओं पर गोलेछा वंश की बड़ी-बड़ी प्रशस्तियाँ उत्कीर्णित हैं । प्रतिष्ठा (३००) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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