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जिनसागरसूरि जी के हाथों से दीक्षा ग्रहण की। भणशाली सधुआ की पत्नी सहजलदे ने दीक्षोत्सव किया। वादी हर्षनंदन ने आपको अध्ययन कराया । सं० १७११ माघ सुदि १२ को अहमदाबाद में गुरु महाराज ने आपको अपने पट्ट पर स्थापित किया। भणसाली वधू की पत्नी विमलादे ने पाटोत्सव किया। सं० १७२० में बीकानेर में गोलेछा गोत्रीय अचलदास कृत उत्सव से भट्टारक पद प्राप्त किया। सं० उग्रसेन ने आपकी अध्यक्षता में शत्रुंजय का संघ अहमदाबाद से निकाला था। बीकानेर पधारने पर गिरधर शाह ने समारोहपूर्वक प्रवेशोत्सव किया । अन्तिम अवस्था में अपने पट्ट पर जिनचन्द्रसूरि को स्थापित कर लूणकरणसर में सं० १७४६ मिगसर वदि ८ को अर्द्धरात्रि में आप स्वर्गस्थ हुए।
३. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि
बावड़ी ग्राम में बहरा वंश के सांवलदास की पत्नी साहिबदे की रत्नकुक्षि से सं० १७२९ में आपका जन्म हुआ था। जन्म नाम सुखमाल था । सं० १७३८ में जिनधर्मसूरि के पास दीक्षित हुए। सं० १७४६ मिगसर सुदि १२ को लूणकरणसर में आपको भट्टारक पद मिला। पदस्थापना का महोत्सव छाजहड़ (जोधाणी) रतनसी ने बड़े विस्तार से किया था। इस प्रसंग पर बीकानेर के श्रीसंघ ने उत्सव को सफलतम बनाया। सं० १७८५ में बीकानेर में जिनविजयसूरि को आपने आचार्य पद प्रदान किया था । सं० १७९४ ज्येष्ठ सुदि पूर्णिमा को बीकानेर में आपका स्वर्गवास हुआ था । इसी वर्ष फाल्गुण वदि ५ को जिनविजयसूरि ने रेल दादाजी में आपके चरण स्थापित प्रतिष्ठित किये थे।
४. आचार्य श्री जिनविजयसूरि
नाहटा गोत्रीय डूंगरसी के आप पुत्र थे । आपकी माता का नाम दाडिमदे था । सं० १७४७ में आपका जन्म हुआ। जन्म नाम रतनसी था । सं० १७५३ में जिनचन्द्रसूरि के पास आपने दीक्षा ग्रहण की। सं० १७८५ में आषाढ़ शुक्ला प्रतिपदा को गुरु पुष्य योग में बीकानेर में आचार्यश्री ने आपको आचार्य पद से विभूषित किया। इनका पदोत्सव हाजीखान देरावासी बड़हरा धीरूमल्ल ने किया था । सं० १७९४ में बीकानेर में आपको भट्टारक पद प्राप्त हुआ। पदोत्सव डागा- पूँजाणियों ने किया और प्रभावना बाई फूला ने की। सं० १७९७ आश्विन वदि ६ को जैसलमेर में सर्वायु पूर्ण कर आपने स्वर्ग की ओर प्रयाण किया। सं० १८२५ मिगसर सुदि ५ को जैसलमेर में आपके स्तूप- पादुका की प्रतिष्ठा हुई (बी०जै०ले०सं०, लेखांक २८६२) ।
५. आचार्य श्री जिनकीर्तिसूरि
पिथरासर (फलौदी) ग्रामवासी खीमसरागोत्रीय उग्रसेन की सहचरी उछरंगदे की कुक्षि से सं० १७९२ वैशाख सुदि ७ को आपका जन्म हुआ। जन्म नाम किशोरचंद (किसनचंद ) था । सं० १७९७
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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