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________________ ८. आचार्य शाखा आचार्य जिनसिंहसूरि के शिष्य भट्टारक जिनराजसूरि और आचार्य जिनसागरसूरि सं० १६७४ में सूरि पदारुढ़ हुए थे। १२ वर्ष पश्चात् आपसी मतभेद के कारण सं० १६८६ में आचार्य जिनसागरसूरि से यह पृथक् शाखा निकली। (१. आचार्य श्री जिनसागरसूरि) बीकानेर निवासी बोथरा शाह बच्छराज की भार्या मृगादे की कोख से सं० १६५२ कार्तिक शुक्ला १४ रविवार को अश्विनी नक्षत्र में इनका जन्म हुआ था। जन्म नाम चोला था पर सामल नाम से प्रसिद्धि हुई। सं० १६६१ माघ सुदि ७ को अमृतसर जाकर अपने बड़े भाई विक्रम और माता के साथ श्री जिनसिंहसूरि जी महाराज के पास दीक्षा लेकर "सिद्धसेन" नाम पाया। आगम के योगोद्वहन किए, फिर बीकानेर में छ:मासी तप किया। कविवर समयसुन्दर जी के विद्वान् शिष्य वादी हर्षनन्दन ने आपको विद्याध्ययन बड़े मनोयोग से कराया। श्री जिनसिंहसूरि जी के साथ संघवी आसकरण के संघ सह शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की। खंभात, अहमदाबाद, पाटण होते हुए वडली में जिनदत्तसूरि जी के स्तूप की यात्रा की। सिरोही पधारने पर राजा राजसिंह ने बहुत सम्मानित किया। जालौर, खंडप, दुनाड़ा होते हुए घंघाणी आकर प्राचीन जिन बिम्बों के दर्शन किये। बीकानेर पधारे, शाह बाघमल ने प्रवेशोत्सव किया। सम्राट जहांगीर के आमंत्रण से विहार कर आगरा जाते हुए मार्ग में जिनसिंहसूरि का स्वर्गवास हो जाने से राजसमुद्र को भट्टारक पद व सिद्धसेन जी को आचार्य पद से अलंकृत किया। चोपड़ा आसकरण, अमीपाल, कपूरचंद, ऋषभदास और सूरदास ने पद महोत्सव किया। पूनमियागच्छीय हेमसूरि जी ने सूरिमंत्र देकर सं० १६७४ फा०सु०७ को जिनराजसूरि व जिनसागरसूरि नाम प्रसिद्ध किया। मेड़ता से राणकपुर, वरकाणा, तिंवरी, ओसियां, घंघाणी यात्रा कर मेड़ता में चातुर्मास बिता कर जैसलमेर पधारे। राउल कल्याण व संघ ने वंदन किया। भणशाली जीवराज ने उत्सव किया। वहाँ श्रीसंघ को ग्यारह अंग सुनाये। शाह कुशला ने मिश्री सहित रुपयों की लाहण की। लौद्रवा जी में थाहरू साह ने स्वधर्मी-वात्सल्यादि में प्रचुर द्रव्य व्यय किया। श्री जिनसागरसूरि जी फलौदी पधारे, श्रावक माने ने प्रवेशोत्सव किया। करणुंजा होते हुए बीकानेर पधारे। पाताजी ने संघ सह प्रवेशोत्सव किया। मंत्री कर्मचंद के पुत्र मनोहरदास आदि सामहिये में पधारे। लूणकरणसर चातुर्मास कर जालपसर पधारे, मंत्री भगवंतदास ने उत्सव सह वंदन किया। डीडवाणा, सुरपुर, मालपुर जाकर बीलाड़ा में चौमासा किया, कटारियों ने उत्सव किया। मेड़ता में गोलछा रायमल के पुत्र अमीपाल-नेतसिंह व पौत्र राजसिंह ने नन्दिस्थापन कर व्रतोच्चारण किये। फिर संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२९७) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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