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अगरचंदगोलछा, जीतमलबोथरा, धर्मचंदगोलेछा आदि ने बड़ा भारी उत्सव किया। गोलछा अगरचंद और उसकी पत्नी लछमादेने हजारों खर्च किए, दादावाड़ी का जीर्णोद्धार करा के जिनपद्मसूरिजी की छत्री में चरण प्रतिष्ठित कराये। इन्होंने जीवाणै में श्री ऋषभदेव भगवान् की प्रतिष्ठा कराई। सं० १९२९ और १९३० के दो चौमासे बालोतरा में किए। चार वर्ष से पानी की तंगी थी, आपके विराजने से ठाठ हो गया।
सं० १९२९ में जेठ सुदि ५ को नागपुर के गीत में श्री जिनपद्मसूरि की स्मृति में महोत्सव का वर्णन है तथा सं० १९३९ के इस गुटके में भावहर्ष शाखा के अनेक यतिजनों व आचार्यों के गीत व कवित्तों आदि का संग्रह है।
(१३. आचार्य श्री जिनफतेन्द्रसूरि
इनके सम्बन्ध में कोई इतिवृत्त प्राप्त नहीं है। नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ की सारी व्यवस्था इन्हीं के पास थी। इन्हीं की अनुमति से यति जुहारमल जी ने नाकोड़ा में पौष वदि १० का मेला चालू किया था। प्रवर्तिनी साध्वी सुन्दरश्री जी की इस तीर्थ के विकास के प्रति विशेष लगन देखकर और साध्वीजी से प्रेरणा पाकर श्री जिनफतेन्द्रसूरि ने विक्रम संवत् १९६६ में इस तीर्थ की निगरानी और देख-रेख का सारा भार अपनी ओर से बालोतरा जैन समाज को संभला दिया था।
(१४. आचार्य श्री जिनलब्धिसूरि
इनके सम्बन्ध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। वर्तमान में इस शाखा की यति परम्परा भी लुप्त हो गई है।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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