SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९. आचार्य श्री जिनसुखसूरि - १०. आचार्य श्री जिनक्षमासूरि - आचार्य पद सं० १८२८ वै०सु० ३ बालोतरा आचार्य पद सं० १८४७ भा०सु० ८ को हुआ। सं० १८८४ अगहन दशमी को बालोतरा में स्वर्गवास हुआ। (११. आचार्य श्री जिनपद्मसूरि) ये मथाणिया गोलछा भैरवदास के पुत्र थे। इनकी माता का नाम अमरता था। सं० १८८४ फाल्गुन वदि ३ को ये पाट पर बैठे। अहमदाबाद में सेठ हठीसिंह के सुप्रसिद्ध मन्दिर की प्रतिष्ठा के समय मुहूर्त सम्बन्धी चमत्कार दिखाया। बम्बई में दो चातुर्मास किए, भगवती सूत्र बाँचा। शासन की बड़ी प्रभावना हुई। बालोतरा के चांपावत और अंग्रेजों के संघर्ष के समय १९१४ में दंड की राशि पूछने पर सात हजार का अंक लिख दिया। जिसे मादलिये में मंढ दिया, खोलने पर सही परचा पाया। सं० १९१६ ज्येष्ठ सु० ५ को सिरोही में दादा साहब के चरणों की प्रतिष्ठा की। आबौरी नगर में चातुर्मास कर धर्म प्रभावना की। जोधपुर के मुता लखमीचंद को चार महीने में देश का दीवान होने का भविष्य कहा। फौजराज को सावधान कर धर्म करने को कहा। शिवै सिंघी को दुर्भिक्ष होने का तथा युद्ध में वीरगति का भविष्य एवं १९२५ से ३० तक दुर्भिक्ष होना बतलाया। अहमदाबाद के सेठ सूरजमल का भाग्योदय बतलाते हुए ५० वर्ष की वय में प्रार्थना करने पर तीन वर्ष में दो पुत्र होना बतला कर, यात्रा का उपदेश दिया। पुत्र जन्म पर एक हजार रु० सेठ का भेंट आया जिसे मन्दिर में लगा दिया। आऊवा के खुश्यालसिंह को भी भविष्यवाणी से परचा दिया। महेवा के जीर्ण मंडप और मन्दिर का उपदेश देकर जीर्णोद्धार कराया। राजा तख्तसिंह जी को चमत्कृत कर तीर्थ को शत्रुजय बना दिया। नाकोड़ा तीर्थ में शंखवालेचागोत्रीय मालासा निर्मापित शांतिनाथ मन्दिर में मूलनायक शांतिनाथ और आजू-बाजू में सुपार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभ भगवान् की मूर्तियाँ विराजमान हैं। ये तीनों मूर्तियाँ संवत् १९१० माघ सुदि ५ को श्री जिनपद्मसूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। इस प्रकार ४४ वर्ष पर्यन्त अनेकविध शासन प्रभावना कर नागपुर पधारे। यति प्रताप और जुहारमल को अपना स्वर्गवास समय बतलाते हुए "हेमा" को पाट योग्य बतला कर भोलावन दी। श्रावकों ने प्रवेश महोत्सवादि धूमधाम से किए। सं० १९२९ आषाढ़ वदि १५ को ध्यानावस्था में कर्म खपाते हुए स्वर्गवासी हो गए। अग्निसंस्कार स्थान में दादावाड़ी में बड़ी सुन्दर छत्री बनवा कर चरण प्रतिष्ठित हुए। चमत्कारी स्थान में ठाठ से पूजा होने लगी। (१२. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि ये सिवाणा के तातेड़ गोत्रीय ओसवाल जेठमल पिता और पना माता के पुत्र थे। आप सं० १९२९ आषाढ़ सुदि १३ कर्क लग्न के समय नागपुर में श्री जिनपद्मसूरिके पाट पर विराजे। नागपुरसंघ के बीकानेरी संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२९५) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy