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________________ (२. आचार्य श्री जिनतिलकसूरि) तिमरी मारवाड़ में लूंकड़ गोत्रीय श्रेष्ठी धारा रहते थे, जिनकी पत्नी का नाम धारलदे था। इन्हीं की कोख से आपका जन्म हुआ। सं० १६१० में आपने दीक्षा ग्रहण की। सं० १६२८ में आचार्य पद प्राप्त किया। श्रीमाल हाथीशाह ने पद-स्थापन का महोत्सव किया। नवकोटी मारवाड़ (मेड़ता) के अधिपति राजा श्री गजसिंह जी आपके भक्त थे और आपके उपदेश से राजा ने छ8 की अमारि पालन करवायी थी। सं० १६७६ ज्येष्ठ वदि अमावस्या को अनशन करके आप स्वर्गस्थ हुए। इनके एक शिष्य रत्नसुन्दर हुए जिनके शिष्य मेघनिधान ने सं० १६८८ में क्षुल्लककुमारचौपाई की रचना की। (३. आचार्य श्री जिनोदयसूरि ) आपका दीक्षा नाम आनंदोदय था। सं० १६७२ वैशाख सु० ८ को आपने आचार्य पद प्राप्त किया था। आपकी रचनाओं में १. विद्याविलासचौपाई सं० १६२२ आ० सुदि १३ बालोतरा में रचित व २. हंसराजवच्छराजचौपाई सं० १६८० तथा ३. चंपकसेनचौपाई सं० १६६९ वीरपुर में रचित उपलब्ध है। (४. आचार्य श्री जिनचन्द्रसरि) विक्रमपुर (बीकानेर) के श्रीश्रीमाल वीराशाह की धर्मपत्नी वीरादे की कोख से सं० १६६४ में आपका जन्म हुआ। जन्म नाम नैणसी (देवकुमार) था। सं० १६७४ में श्री जिनोदयसूरि के पास आपने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा महोत्सव सेठ धेनु ने किया था। सं० १६७८ में जोधपुर में जिनोदयसूरि ने अपने कर-कमलों से इन्हें पट्टधर बनाया। सं० १७१५ में महाराज जसवंतसिंह जी को प्रतिबोध देकर दशमी के दिवस की अमारि घोषणा करवाई। सं० १७३३ श्रावक सुदि ३ को जैतारण में अनशन करके आप स्वर्ग सिधारे। ५. आचार्य श्री जिनसमुद्रसूरि - आचार्य पद सं० १७४२ मार्गशीर्ष सु० ७ ६. आचार्य श्री जिनरत्नसूरि - आचार्य पद सं० १७७६ ज्येष्ठ व० ३ ७. आचार्य श्री जिनप्रमोदसूरि - आचार्य पद सं० १७९२ आषाढ़ वदि ५ को हुआ। एक बार चैत्र महीने में बालोतरा में नदी का पानी चढ़ने पर किसी की चुनौती से नदी पार उतर के परचा दिखाया। वापस आकर अनशनपूर्वक स्वर्गवासी हुए। ८. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि - आचार्य पद सं० १८१५ माघ सुदि १३ । इनके ३ शिष्य थे १. पट्टधर जिनसुखसूरि, २. जगचन्द्र, ३. माणकचंद (२९४) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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