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जिनलब्धिसूरि - हर्षविमलसूरि → पण्डित दयासागर - जसकुशल - उदयभान -
रूपचन्द → प्रेमराज - कनीराम - आणन्दराम जिनकीर्तिसूरि - मुक्तिवसन, शिवराज। पण्डित जयरुचि, शिवलाल। लब्धिरत्न, शिवरत्न,
मुक्तिरत्न पत्र के अन्त में लिखा है :
संवत् १८४४ अणदोजी (आनन्द राय) शिष्य मलूकचन्द स्वरूपचन्द माणकचन्द रतनचन्द सुमतिहंस संवत् १७३१ पौष वदि १२ जैतारण स्वर्ग ७२ वर्ष आयु।
अमरसी के स्वर्गवास के संस्कार समय में ५६ राजस्थानी सोरठे में स्वर्ग संवत् १७६१ कार्तिक सुदि २ स्वर्ग अमरसी पधारे।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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