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________________ ११. आचार्य श्री जिनोदयसूरि आप रैया ग्राम निवासी दोसी गोत्रीय सोमो साह की धर्मपत्नी सोभागदे की रत्नकुक्षि से उत्पन्न हुए। सं० १८०९ मिती चैत्र वदि ११ को जैतारण निवासी धाड़ीवाल ठाकुर संखवाल खीमराज भीमराज कृत नन्दि महोत्सव में आपने आचार्य-भट्टारक पद प्राप्त किया। सं० १८२२२ मार्गशीर्ष सुदि ३ को मेड़ता नगर में आपका स्वर्गवास हुआ। १२. आचार्य श्री जिनसंभवसूरि) बीको साह पिता कालादे माता के आप पुत्र थे। पदोत्सव सं० १८२३ चैत्र सुदि को लोढ़ा धारीवालों द्वारा किया गया था। आपका सं० १८५६ माघ वदि १० को श्री मालव देशस्थ कुकर्स कापसी नगर में स्वर्गवास हुआ। १३. आचार्य श्री जिनधर्मसूरि - आपका स्वर्गवास सं० १८५७ रतलाम में हुआ। १४. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि - आपका आचार्य पद सं० १८५८ जैतारण में हुआ। १५. आचार्य श्री जिनकीर्तिसूरि - आपका स्वर्गवास सं० १९३२ में हुआ। १६. आचार्य श्री जिनबुद्धिवल्लभसूरि - इनका आचार्य पद सं० १८८२ मिगसिर वदि ५ एवं स्वर्गवास सं० १९४२ में हुआ। १७. आचार्य श्री जिनक्षमारत्नसूरि - आपका स्वर्गवास सं० १९६२ में हुआ। १८. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि - कु० वर्ष पूर्व पाली में स्वर्गस्थ हुए। आद्यपक्षीय पट्टावली (हस्तलिखित) की प्रति के अन्त में कतिपय आचार्यों की शिष्य सन्तति का उल्लेख है, जो निम्न है :जिनचन्द्रसूरि १६६१ - समयकीर्ति → महोपाध्याय कनकतिलक - महोपाध्याय लक्ष्मीविनय - रत्नाकर - हेमनन्दन - हर्ष जिनहर्षसूरि उपाध्याय उदयरत्न → उपाध्याय केशवदास → वाचक दामोजी (दयानिधान), इन्द्रभान → वाचक किशनोजी → पण्डित सकरमल जी - वाचक हीराचन्द (हितलावण्य) - पण्डित दौलतराम, लक्ष्मीचन्द - अगरचन्द, नयणचन्द १. द्वितीय पट्टावली के अनुसार माता-पिता का नाम जोधोसाह और जसवंतदे था। २. द्वितीय पट्टावली के अनुसार सं० १८२२ चैत्र वदि ६। ३. रायसिंह और रंगरूप दे माता का उल्लेख है। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२९१) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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