SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सं० १७१२ में सोजत में आपने हाथी को कीलित किया, जिसका साक्षी सारा सोजत शहर है। हाथी के स्थान पर अब कोतवाली चौतरा के पास मंडी के बीच में सगिड़ा पूजा जाता है। सं० १७२५ चैत्र वदि ९ के दिन मेड़ता में आपका स्वर्गवास हुआ। ___ सं० १७२३ में आपने भं० ताराचंद कारित पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा कराई थी जो बीकानेर के गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय में मूलनायक रूप में विराजमान है। जिनहर्षसूरि के शिष्य सुमतिहंस और सुमतिहंस के शिष्य मतिवर्धन द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं। ८. आचार्य श्री जिनलब्धिसरि सं० १७११ वैशाख वदि ११ के दिन धाड़ीवाल साह कर्मचंद जी कृत नन्दि महोत्सव में स्वयं श्री जिनहर्षसूरि जी ने आपको अपने पाट पर स्थापित किया। आपका जन्म रायपुर में दोसी गोत्रीय देदो साह की धर्मपत्नी दाडिमदे की रत्नकुक्षि से हुआ। सं० १७५४ ज्येष्ठ वदि १११ को जोधपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। इनके द्वारा रचित नवकार-माहात्म्य चौपाई (वि०सं० १७५०) नामक कृति प्राप्त होती है। (९. आचार्य श्री जिनमाणिक्यसूरि) तदनन्तर आप पट्टधर हुए। आपका जन्म उदो साह की धर्मपत्नी उछरंगदे की कुक्षि से हुआ। आचार्य श्री जिनलब्धिसूरि ने स्वयं सं० १७५४ पौष वदि ९ के दिन आपको आचार्यत्व प्रदान किया। केवल नौ मास पद भोग कर सं० १७५५ भादवा वदि ९ को मेड़ता में आपका स्वर्गवास हुआ। (१०. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि) उनके बाद आप पट्टधर हुए। आपका जन्म उदो साह की धर्मपत्नी उछरंगदे की कुक्षि से हुआ। सं० १७५५ आश्विन शुक्ला द्वादशी को भण्डारी प्रेमचंद रूपचंद कारित नन्दि महोत्सव पूर्वक आचार्य जिनचन्द्रसूरि से आपको सूरि पद प्राप्त हुआ। सं० १७७४ वैशाख सुदि १५ को भण्डारी गोत्रीय रूपचंद कृत श्री विमलनाथ प्रासाद की आपने प्रतिष्ठा की। सं० १७७५ ज्येष्ठ सुदि १४ को तावरिया कर्मचंद कारित आदिनाथ प्रासाद की सोजत में प्रतिष्ठा की। सं० १८०९ फाल्गुन सुदि १४ के दिन जैतारण में आपका स्वर्गवास हुआ। १. पौष वदि ११ जैतारण (संस्कृत पट्टावली श्लोक ३६ में) २. संभवतः जिनरत्नसूरि पट्टधर । (२९०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_04
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy