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श्री मुनिसुव्रत स्वामी की जन्मभूमि राजगृह पहुँच कर वैभारगिरि, विपुलगिरि आदि की यात्रा की। गरम पानी के सप्त कुण्ड, आम्रवन आदि देख कर वैभारगिरि पर मुनिसुव्रतस्वामी और विपुलगिरि पर पार्श्वनाथ जिनेश्वर को वन्दना की। तदनन्तर पावापुरी, नालन्दा, कुण्डग्राम, काकंदी की यात्रा करके विहारनगर आये। भगवान् महावीर आदि सभी जिनेश्वरों की विस्तार के साथ वन्दना की। फिर चन्द्रपुरी, वाराणसी, रणवाही (रत्नपुरी), कौशाम्बी की तीर्थवन्दना कर लौटे। स्वधर्मी वात्सल्य, संघ पूजा आदि उत्सव हुए। संघपति जिनदास ने बिम्ब प्रतिष्ठा करवायी। पंचमी तप के उद्यापन में दस-बारह स्वर्णाक्षरी पोथियाँ-कल्पसूत्र लिखवाये। इस प्रकार पाँच वर्ष पूरब देश में विचर कर संघ के आग्रह से पश्चिम देश की ओर विहार किया।
सूरि महाराज के विहार में भीषन आगेवान था। उनके जाने-आने में बीस हजार रुपयों का खर्च हुआ। जब वे मेवाड़ की सीमा में पहुँचने को हुए तो संघ ने नाना अभिग्रह-नियम लिए। देवलवाड़ा नगर में पधारने पर नाना प्रकार के उत्सव होने लगे। संघपति नाल्हा ओसवाल ने खूब धन बरसाया। भीषन वापस जौनपुर लौट गया। सूरि जी ने दस-दस शिष्यों को दीक्षित किए। नाल्हा ने दो हजार प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई। ___मेवाड़ से विहार कर सूरि जी गुजरात आये। स्थान-स्थान में दस शिष्य दीक्षित किए। नाल्हा संघपति ने शत्रुजय एवं गिरनार का संघ निकाला, सूरि जी का सान्निध्य था, तीर्थ वन्दना करते हुए खंभात आये। नाल्हा, जीवा और जिनदत्त की बड़ी ख्याति हुई। सूरि जी ने खंभात में चातुर्मास किया। उपधान, मालारोपण आदि उत्सव हुए। वहाँ से मरुदेश की ओर विहार किया। राजद्रह, सांचौर, बाहड़मेर, महेवा पधारे। महीने में २५ शिष्यों को दीक्षा दी। जैसलमेर पहुँच कर प्रतिष्ठा करवाई।
फिर मेवाड़ के सग्रेवा ग्राम में प्रतिष्ठा के हेतु समरिंग, सांगा और साजण ने सूरि जी को बुलाया। शान्तिनाथ भगवान् के विशाल जिनालय में प्रतिष्ठा करके देवलवाड़ा पधारे। मंत्रीश्वर चउण्डागर ने प्रवेशोत्सव किया। उसने स्वर्णमय दण्ड कलश युक्त भगवान् महावीर का जिनालय बनवाया। मयालइ गाँव पधारने पर देल्हा द्वारा बिम्ब प्रतिष्ठा, स्वधर्मीवात्सल्यादि उत्सव किए गए।
गुजरात के संघ की वीनती से सूरि जी गुजरात-पाटण पधारे। मेघा, तिहुणा, सिवा ने उत्सव किया। कितने ही शिष्य-शिष्याओं को वाचनाचार्य और प्रवर्तिनी पद से विभूषित किया। यहाँ सूरि जी ने अपना आयु शेष ज्ञात कर संलेखना की। सं० १४८६ फाल्गुन शुक्ला १२ के दिन संघ को शिक्षा देकर शुभ ध्यानपूर्वक स्वर्गारोहण किया। आपने अपने शासन काल में १३६ मुनि, ५३ साध्वियाँ, ३ उपाध्याय, २१ वाचनाचार्य और १२ प्रवर्तिनी पद प्रदान किए। आपने सात सौ संघपति स्थापित किए। बारह बड़ी-बड़ी प्रतिष्ठाएँ कराई, छोटी-मोटी की तो कोई गिनती नहीं।
__ आपका जन्म सं० १४३६, दीक्षा १४४४, सूरि पद १४६१, स्वर्गवास १४८६ है। कुल पचास वर्ष की अल्पायु में आपने बड़ी शासन प्रभावना की। श्री कीर्तिरत्नसूरि और
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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