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________________ ११. आचार्य श्री जिनोदयसूरि आप नाहटा वंश में उत्पन्न हुए थे । सं० १७७२ आषाढ़ सुदि १३ को गुरुदेव श्री जिनसुन्दरसूरि जी ने स्वयं आपको आचार्य पद पर स्थापित किया था। आपने अनेक देशों में विहार कर शासन की महती प्रभावना की थी। जैसलमेर में आपने मिती आषाढ़ सुदि ७ सं० १७८१ में श्री जिनसागरसूरि के समुदाय के साधुओं को मिलाकर, श्रावकों को एकत्र कर, गच्छ के विरोध को दूर करके एकत्व स्थापन किया था । श्री सूरचन्द्र ने आज्ञा मान्य की । सं० १८०५ कार्तिक वदि ११ के शिलालेख में आपको विद्यमान भट्टारक लिखा है । इसके पश्चात् और सं० १८१२ से पूर्व आपका स्वर्गवास हुआ था। (देखिये नाहर, जैन लेख संग्रह, भाग ३, लेखांक २५०८ - ९) । आप अच्छे विद्वान् थे । आपके द्वारा रचित गुणसन्दरीचौपाई, गुणावलीचौपाई, उदयविलास, सूत्रकृतांगबालावबोध आदि कृतियाँ उपलब्ध हैं । १२. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि श्री जिनोदयसूरि के आप पट्टधर थे । सं० १८१२ से पूर्व आपको सूरि पद निश्चित ही प्राप्त हो गया था क्योंकि इस संवत् में आपने गुरुदेव के चरण प्रतिष्ठित किए थे। १३. आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि इनका समय सं० १८३० - १८४१ एवं कई प्रतियों में सं० १८४३ से १८६१ पाया जाता है। जैसलमेर के शिलालेख सं० १८४३ से १८४६ के ( नाहर, लेखांक २५१० महोपाध्याय जयवल्लभ और ले० २५११ में वर्द्धमान जी के स्तूप प्रतिष्ठा ) प्राप्त हैं । १४. (१५. आचार्य श्री जिनक्षेमचन्द्रसूरि सं० १९०२ कार्तिक सुदि १४ को इनका स्वर्गवास हुआ था । १६. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि ये सं० १९३० तक बीकानेर में विद्यमान थे । संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only 蛋蛋蛋 (२७९) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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