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________________ सं० १५९४ में तीन वर्षी दुःकाल से प्रजा को दुःखी देखकर रावल लूणकरण जी ने गुरु महाराज को मेह बरसाने की प्रार्थना की। रावल जी ने बाहड़मेर की ओर कटक भेजी थी जिसके विजय की बधाई आने से फिर आग्रह किया सो गुरु महाराज ने अष्टम तप पूर्वक श्री धरणेन्द्र मेघमाली का आराधन कर आह्वान किया। साधना में रु० २२००/- व्यय हुए। धरणेन्द्र ने प्रत्यक्ष होकर संकेत दिया। भाद्रपद सुदि १ को वृष्टि हुई। प्रथम प्रहर में अपने शिष्य को मु० झांझड के साथ काचली देकर खड़ा रखा। तालाब भर गये। सूरि जी की बड़ी महिमा हुई। रावल लूणकरण जी ने उपाश्रय आकर गुरु महाराज को मोतियों से बधाया। पटोलीकरण विधि का केवल बेगड़ गच्छाचार्य को आदेश दिया। एक बार अलीखान खंधारी गजनी से चढ़कर जैसलमेर आया। उसने तूंबे चित्रित-मंत्रित कर महलों में बंधा दिए। एक तूंबा अपने पास रख लिया। सूरि जी ने ज्ञान बल से ज्ञात कर लिया कि उसने अपने पास जो तूंबा रखा है उसका छेदन करने से महलों में स्थित-व्यक्तियों का शिरोच्छेद हो जायेगा। उन्होंने सारे तूंबे उतरवा दिए जिससे उसका मंत्र असफल हो गया। फिर उसने अपना कटक एकत्र कर साथ धनमाल भाटियों को बाँट कर विश्वास में ले लिया। गुरु महाराज ने मंत्री जीया को पहले ही कह दिया कि "आज दो प्रहर तक काल कूट बेला है, घर से न निकलना।" किन्तु उसने बात न मानी और रावल जी के आवश्यक बुलावे पर चला गया। लौटते हुए वेश्या से झमेले का समाचार मिला। नीचे और ऊपर के प्रतोलीद्वार बंद हो गये। मध्य में रहे असुरों ने युद्ध किया। उस युद्ध में मं० जीया और भी बहुत से लोग काम आये। भाटी लोग बारूद फेंक कर उन्हें जलाने लगे तो उन्होंने देखा। "अग्नि से जलने पर दोजख मिलेगा" सोचकर हार स्वीकार कर ली, उन लोगों के डेरे लूट लिये गये। गुरु महाराज के वचनों की सत्यता ज्ञात कर सिंहासन, चार चंद्रुआ देकर वाजिबादि के साथ उपाश्रय पहुँचाये। सं० १६१२ में जब श्री जिनमाणिक्यसरि जी देरावर यात्रा के मार्ग में स्वर्गस्थ हो गए तो जैसलमेर आने पर आचार्य पद के लिए मतभेद हो गया। रावल श्री मालदेव जी ने जिनगुणप्रभसूरि जी को मतभेद मिटा कर पदस्थापना करने का भार सौंपा। सूरिजी ने रीहड़ गोत्रीय श्रीवंत के पुत्र सुरताण को भादवा सुदि ९ के दिन रावलजी कृत पदस्थापना महोत्सव द्वारा सूरिमंत्र देकर श्री जिनचन्द्रसूरि नाम प्रसिद्ध किया। जब धन उपाध्याय ने बादशाही फरमान से गच्छ-भेद करना चाहा और सरकारी सहायता से भंडार आदि हस्तगत करना चाहा तो श्री जिनगुणप्रभसूरि ने दो अठाई कराई और प्रत्येक घर में श्वेत आयम्बिल कराया एवं "आम्बिल अमृत वाणी, धन्ने थास्ये धूड़धाणी" जाप कराया। सरकारी लोग भंडार में गये तो उन्हें सांप और अंगारे दिखाई दिये जिससे वे लोग भाग गए। धन्न उ० झूठा पड़ा। बेगड़गच्छ-पट्टावली के अनुसार जब श्री जिनचन्द्रसूरि जी पंचनदी साधन करने के लिए अकबर के आग्रह से गए तो श्री जिनगुणप्रभसूरि जी की अनुमति से गए एवं लाहौर-मुलतान से रेपड़ी में आये तो उन्हें सुखासन भेजकर बुलाया। पंचनदी साधन में पहले ३ पीर आये। फिर सूरिजी के साधने से खोडिया (क्षेत्रपाल) आ गया। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२७५) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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