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________________ चावल सवार हो जायेंगे ।" आज्ञा पाकर रावल जगमाल युद्ध में गया और विजयी हुआ । तब बीबी ने ये दोहा कहा बादशाह को जीवित पकड़ गुरुदेव के पास लाया और गुरुदेव की आण मान कर उसे छोड़ दिया । इत्यादि अनेक चमत्कार कर्ता आपका ३० वर्ष संयम (सूरिपद) पालने के अनंतर सं० १४८० में स्वर्गवास हुआ। पग पग नेजा पाड़िया, पग पग पाड़ी ढाल । बीबी पूछे खान ने, जग केता जगमाल ॥ ३. आचार्य श्री जिनधर्मसूरि श्री जिनशेखरसूरि के पट्ट पर सं० १४८० मिती ज्येष्ठ सुदि १० गुरुवार को महेवा नगर में बेगड़ भुवनपाल कारित नंदि महोत्सव द्वारा आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरि जी ने आपको सूरि पद देकर स्थापित किया। आपके पिता का नाम ईसर ( भरथिग मंत्री) व माता का नाम तेजी ( कमला देवी ) था । सं० १४९१ प्रतिष्ठित अजितनाथ बिम्ब, सं० १५०१ माघ वदि ६ को श्री अजितनाथ तथा सुमतिनाथ बिम्ब प्रतिष्ठित किए। सं० १५०४ में भी आपने बिम्ब प्रतिष्ठाएँ की जिनके लेख " बीकानेर जैन लेख संग्रह" में प्रकाशित हैं। एक प्राचीन त्रुटक पट्टावली के अनुसार आपने ग्रामानुग्राम विहार किया था। बेगड़ बाव में देव जुहारे, सातलपुर, रायनपुर आदि के देव जुहार कर भरूपा - भरुय (च) पधारे। श्रावकों ने बड़े आडंबर से प्रवेशोत्सव कराया एवं साधर्मी वात्सल्य किया । भद्रेश्वर के देहरा में प्रतिष्ठा करवाई । वहाँ से गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ की यात्रा करके सर पधारे, यहाँ से सूरती संघ आबू की ओर गया । सर (थर) पार करके संघाग्रह से चातुर्मास विराजे, खूब धर्म ध्यान हुआ। पीलू मोदरा के जिनालय की प्रतिष्ठा की एवं श्री जयानन्दसूरि जी को आचार्य पद दिया, महामहोत्सव हुए। लौटते हुए श्री पारकर संघ के साथ छवटण आये। बाहड़मेर, राडद्रह, भीनमाल, सीरोही, जालौर, आबू, सांचौर, सूराचंद के देव जुहारे । यहाँ श्री ठिल सुत कालू ने नगर प्रवेशोत्सव कराया। सूराचन्द से डोढ़ कोश रायपुर है जहाँ श्री महावीर स्वामी का जिनालय निर्माण करा के सं० १५०९ आषाढ़ सुदि २ को आपके कर-कमलों से प्रतिष्ठा करवायी। यहाँ का राणा श्री घडसी आपश्री के उपदेशों से प्रतिबोध पाकर श्रावक बना। राणा घड़सी ने घड़सीसर निर्माण कराया तथा कालू मुंहता ने भी कालूसर का निर्माण कराया जो अभी भी सूराचन्द में विद्यमान है। वहाँ से विहार कर गुरु महाराज कांपिली, कुंभा, छत, घाट, खावड़ आदि के संघ को वंदाते हुए राह पधारे। श्री पार्श्वनाथ और महावीर जिनालय के देव जुहार कर मंत्री नाल्हा को वंदाया। फिर शत्रुंजय, आबू की यात्रा करके रत्नपुर पधारे, रत्नपुरा श्रावकों को प्रतिबोध दिया। श्री धीरे, भागवे, कुण्डल, सिवाणा आदि के संघ को वंदा कर जिनवन्दन कर महेवा पधारे । यहाँ मंत्री वणवीर, ऊदा ने बड़े महोत्सव किये। रावल जी वन्दनार्थ आए । आग्रहपूर्वक चातुर्मास रखे, खूब धर्मध्यान हुए । यहाँ गुरु महाराज श्री जिनशेखरसूरि जी के स्तूप की यात्रा करके शिवाणची, महेवची, कोटणा आदि के समस्त (२७० ) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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