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बादशाह महमूद को प्रतिबोध दिया। बादशाह ने आपका अत्यधिक समारोह के साथ पद-स्थापन महोत्सव किया। आपके भ्राता ने आपके दर्शन पर ५०० घोड़ों का दान किया और एक करोड़ द्रव्य व्यय किया। सं० १४२२ में बादशाह ने एक समय प्रसन्न होकर "बेगड़ा" विरुद प्रदान किया और कहा-"मैं भी बेगड़ तुम भी बेगड़, बेगड़ गुरु गच्छ नाम । सेवक गच्छनायक सही बेगड़ अविचल पामी ठाम।" तभी से आपके श्रावक और आप भी बेगड़ कहलाते हैं। एक बार आप सांचौर पधारे, बेगड़ और धूलग दोनों गोत्र परस्पर मिले। वहाँ राडरह से लखमीसिंह मंत्री ने संघ सहित आकर गुरुश्री को वन्दन किया और अपने "भरम" नामक पुत्र को गुरुश्री को वहराया और चार चौमासे वहीं रखा। सं० १४३०२ में अनशन करके जोधपुर के निकट शक्तिपुर में स्वर्ग पधारे। आपका वहाँ स्तूप बनवाया गया। वह बड़ा चमत्कारी है, हजारों व्यक्ति वहाँ दर्शनार्थ आते हैं। स्वर्ग गमन के बाद भी आपने तिलोकसी शाह को छ: पुत्रियों के पश्चात (ऊपर) एक पुत्र देकर उसकी वंशवृद्धि की। ___श्री जिनेश्वरसूरि जी ने सं० १४२५ वैशाख सुदि ११ को तथा सं० १४२७ ज्येष्ठ वदि १ को जिन बिम्बादि की प्रतिष्ठाएँ कराई थीं जिनके लेख बीकानेर जैन लेख संग्रह लेखांक ४७३ व २७६८ में प्रकाशित हैं।
(२. आचार्य श्री जिनशेखरसूरि
सं० १४५० में आप आचार्य पद प्राप्त कर महाप्रभावशाली और बड़े प्रतापी हुए। एक समय जब आपका महेवा चातुर्मास था, वहाँ पर बादशाह तेरह तुंबण सेना लेकर चढ़ आया। तब वहाँ के रावल ने गुरुदेव की शरण में आकर लज्जा रखने की प्रार्थना की। आपश्री ने तेरह कलशी सरसों और तेरह कलशी चावल अभिमंत्रित करके रावल जी को दिए और कहा कि "चिन्ता मत करो, युद्ध में जाओ और बादशाह की फौज सामने आये तब तीन ताली बजाना, तत्काल ये सरसों घोड़े और
१. महमूद बेगड़ा का शासनकाल ई० सन् १४५८-१५११ सुनिश्चित है। (द्रष्टव्य-रमेशचन्द्र मजुमदार और ए.डी.
पुसालकर, हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ इन्डियन पीपुल-भाग ६, दिल्ली सल्तनत, प्रथम संस्करण, मुम्बई १९६० ई०. पृ० १६२) अतः शाखा प्रवर्तक जिनेश्वरसरि और महमद बेगडा की समसामयिकता असंभव है। यह
शाखा बेगड़ क्यों कहलायी, यह अन्वेषणीय है। २. संवत् चउद त्रीसा समैं, गुरु संथारो कीध हो। सरग थयौ सकतीपुरै, बेगड़ धंन जस लीध हो।
(ऐ००का०सं०, पृ० ३१५) ३. लक्ष्मीसिंह के पुत्र भरम बालक थे अतः चार वर्ष वही राडद्रह में रहे अतः बड़े होने पर शिक्षा प्राप्त कर
दीक्षा ली और सं० १४५० में आचार्य पदासीन होकर जिनशेखरसूरि भट्टारक बने हों। छाजहड़ गोत्र के आग्रह के कारण गच्छ संचालन २० वर्ष सोमदत्तसूरि ने किया होगा क्योंकि सं० १४३८ के लेख में (बीकानेर जैन लेख संग्रह लेखांक ५३४) जिनेश्वरसूरि पट्टे सोमदत्तसूरि लिखा है, यह छाजहड़ वंश का लेख होने से अनुमान होता है। पट्टावली में सोमदत्तसूरि का नाम नहीं है। हमारे संग्रह की एक बेगड़ गच्छ पट्टावली में सोमदत्त
सोमदत्तसरि को मंडलाचार्य लिखा है और उनकी विद्यमानता में स्वर्गस्थ होना लिखा है।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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