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________________ संघ को वंदा कर श्री जागुसा गाँव पधारे। मंत्री जयसिंह ने बड़े आडंबरपूर्वक चौमासा कराया। खूब धर्मध्यान हुए। लौटते समय मंत्री जयसिंह और उसकी भार्या जमनादे ने अपना देदा नामक पुत्र समर्पित किया। फिर पूज्यश्री सिणधरी, तलवाड़ा, थल, पोकरण आदि देव जुहार कर आसणीकोट पधारे। यहाँ श्री जैसलमेरी संघ वन्दनार्थ सन्मुख आया। __ सं० १५१२ में राजद्रह गाँव में मंत्री समर सरदार ने आपको डूंगरपुर से बुलाकर प्रतिष्ठा कराई थी। संघ द्वारा प्रवेशोत्सव पूर्वक जैसलमेर नगर पधारे। राव श्री देवकरण जी सन्मुख आये। चातुर्मास में खूब धर्मध्यान हुए। सं० १५१३ माघ शुक्ल ३ शुक्रवार को मंत्री गुणदत्त ने महोत्सवपूर्वक बिम्ब प्रतिष्ठा करवाई। रावल जी ने महाराजश्री के विराजने के लिए नया उपाश्रय निर्मित कराया। देदा को दीक्षा देकर दयाधर्म नाम से प्रसिद्ध किया। आपने एक बार जैसलमेर में अपने अलौकिक प्रभाव से मेह बरसा कर अकाल मिटाया। ___ सं० १५२३' के आषाढ़ महीने में मं० गुणदत्त, मं० राजसिंह ने बड़े धूमधाम से नंदि महोत्सव किया और आचार्य श्री जयानन्दसूरि के कर-कमलों से आचार्य पद दिलाकर श्री जिनचन्द्रसूरि को अपना पट्टधर बनाया और स्वयं श्रावण वदि ७ को स्वर्गवासी हुए। सं० १५२५ में आपके स्मारक स्तूप की प्रतिष्ठा श्री जयानन्दसूरि जी ने आषाढ़ शुक्ल १० को की थी। इनके शिष्य जयानन्द ने वि०सं० १५१० में धन्यचरित महाकाव्य की रचना की। ४. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि श्री जिनधर्मसूरि के पट्ट पर श्री जिनचन्द्रसूरि बैठे। आप मंत्री कुलधर के वंशज मंत्री जयसिंह और धर्मपत्नी जमनादे (जसमा) के सुपुत्र थे। आपका जन्म नाम देदिग और दीक्षा नाम दयाधम (देवमूर्ति) था। ऊपर दीक्षा और सूरि मंत्र का विवरण दिया गया है। पट्टावली में संवत् अयथार्थ है, पर शिलालेखादि सं० १५२५ व १५२८ के तथा सं० १५५६ व १५६४ के लेख मिलते हैं। आचार्य जिनचन्द्रसूरि जी वहाँ से विहार कर खावड़, घाट आदि गाँवों में विचरते हुए पारकर पधारे। गौडी पार्श्वनाथ जी की यात्रा कर पारकर में चातुर्मास किया। कच्छ देश पधारे, मं० समरथ, सुभकर ने बड़े ठाठ से चातुर्मास कराया। गिरनार और शत्रुजय महातीर्थों की यात्रा कराई। फिर अपने स्थान में आकर मं० समरथ ने अपने पुत्र की दीक्षा बड़े आडंबर से कराई। महिमामंदिर दीक्षा नाम १. यद्यपि पट्टावलियों में आपका स्वर्गवास सं० १५२८ व २९ लिखा है पर आपके स्मारक स्तूप के चरण जो इस समय श्री समयसुन्दर जी के उपाश्रय में रखे हैं उससे समस्त भ्रांति दूर हो जाती है। पादुका लेख इस प्रकार है॥ ९० ॥ ॐ नमः श्रीगुरुभ्यः। संवत् १५२३ वर्षे श्रावण वदि ७ बुधे स्व:प्राप्ति तत् सं० १५२५ वर्षे आषाढ़ शुक्ल दशम्यां चन्द्रे बेगड़ श्री खरतरगच्छे श्री जिनेश्वरसूरि संताने भ० श्री जिनशेखरसूरि पट्टालंकार श्री भट्टारक श्री जिनधर्मसूरीश्वर पादुके श्री जयानंदसूरि प्रतिष्ठिते संघस्य श्रेयसे । नमः नमः श्री। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२७१) ___Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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