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खरतरगच्छ की शाखाओं का इतिहास - १
खरतरगच्छ की १० शाखाओं का यत्किञ्चित् इतिवृत्त तत्सम्बन्धित पट्टावलियों, मूर्तिलेखों, रचना - प्रशस्तियों एवं लेखन-पुष्पिकाओं आदि में प्राप्त होता है, जो क्रमशः इस प्रकार है :
१. मधुकर शाखा
महोपाध्याय क्षमाकल्याणीय पट्टावली के अनुसार युगप्रवराचार्य श्री जिनवल्लभसूरि के समय में इस शाखा का प्रादुर्भाव हुआ था, किन्तु इस शाखा के प्रवर्तक आचार्य कौन थे? किस कारण से पृथक् आविर्भाव हुआ? इत्यादि प्रश्नों का हमें कोई समाधान नहीं मिलता। साथ ही इस परम्परा में कौन-कौन आचार्य हुए और यह परम्परा कब तक चली? निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता । किन्तु शिलालेखों के आधार से यह निश्चित है कि सोलहवीं शती तक येन-केन रूपेण यह परम्परा चलती रही है। श्री धनप्रभसूरि (सं० १५१२), मुनिप्रभसूरि (१५४८, १५६३), श्रीसूरि, चारित्रप्रभसूरि और गुणप्रभसूरि आदि के लेख प्राप्त होते हैं। इनमें कई आचार्य सन्दिग्ध हो सकते हैं किन्तु इनके नाम के साथ ‘“खरतर मधुकर" शब्द का स्पष्टोल्लेख होने से सन्देह का अवकाश नहीं रहता। कई लेखों से "चतुर्दशीपक्ष" मान्यता का उल्लेख भी मिलता है।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड
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