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________________ * श्रीपूज्य श्री जिनचन्द्रसूरि श्री जिनविजयेन्द्रसूरि जी के पट्ट पर उनके स्वर्गवास के ८ वर्ष पश्चात् श्री चन्द्रोदय गणि बैठे जो श्रीपूज्य श्री जिनचन्द्रसूरि नाम से प्रसिद्ध हुए। इनका जन्म सं० २०११ आश्विन शुक्ला चतुर्दशी की मध्य रात्रि में जयपुर नगर में हुआ। इनके पिताजी का नाम हंसमुखलाल जी गोलिया और माता का नाम चन्द्रकला देवी था। इनका नाम रखा गया देवेन्द्र। दिल्ली गाँधी नगर में रहते थे, माँ का देहान्त हो जाने पर पिता ने ननिहाल जयपुर भेज दिया। विदुषी साध्वी श्री विनयश्री जी की प्रेरणा से वैराग्य पूर्वक सं० २०२१ ज्येष्ठ शुक्ला ६ को श्रीपूज्य जी श्री जिनधरणेन्द्रसूरि जी के निकट दीक्षा लेकर "चन्द्रोदय" नाम प्राप्त किया। रायपुर में यतिवर्य श्री जतनलाल जी के सान्निध्य में सुचारु रूप से विद्याध्ययन किया। विवेकवर्द्धन सेवाश्रम की गतिविधियों में समुचित अनुभव प्राप्त होकर बीकानेर आये। सं० २०२८ में माघ शुक्ला १३ को बड़े उपाश्रय में समारोहपूर्वक सूरि पद प्राप्त कर श्रीपूज्य जिनचन्द्रसूरि जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। आपने बीकानेर, रायपुर, उज्जैन, कलकत्ता, अजीमगंज, शिकागो फिर बीकानेर और जीयागंज में चातुर्मास किये। श्री सुशील मुनि जी के साथ आपने सन् १९७५ में विदेश यात्राएँ की। थाइलैण्ड, हांगकांग, जापान, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड आदि अनेक स्थानों में जैन धर्म प्रचार के साथ-साथ विविध अनुभव प्राप्त कर भारत लौटे। फिर विदेशी भक्तों की पुकार पर विदेश जाकर कर दो वर्ष रहे। शिकागो में चातुर्मास किया। अमेरिका के माण्ट्रियल के निकट बाल मारिन नगर में भगवान् महावीर शोध केन्द्र स्थापित किया। वापस भारत लौट कर देश के विविध स्थानों में विचरण कर रहे हैं। आपने गद्दी पर बैठने के बाद भिलाई में प्रतिष्ठा की। फिर बागपुर, बीगा, पड़ाना, सारंगपुर आदि में भी मंदिरों की प्रतिष्ठाएँ की। अजीमगंज में दादा साहब के चरण एवं बीकानेर में सीमधर स्वामी की व रेल दादाजी में समाधि स्थल पर अपने गुरु महाराज के चरणों की प्रतिष्ठा की। आन्ध्रप्रदेश के प्राचीन तीर्थ कुल्पाक जी में ध्वजा दण्ड प्रतिष्ठित किया। श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम (हम्पी) में भी साधना हेतु विराजे । जियागंज संघ ने आपको सिद्धान्त-महोदधि पद से विभूषित किया। धार्मिक शिविरों की उपयोगिता निर्विवाद है। आपके सान्निध्य में जीयागंज और कलकत्ता में धार्मिक शिक्षण शिविर आयोजित हुए। जियागंज में नेत्र-शिविर भी लगा। वर्तमान में आपने अपना ध्यान विपश्यना की ओर केन्द्रित किया है। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२५९) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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