________________
आपके हाथ से महोपाध्याय पद १, वाचनाचार्य पद १, उपाध्याय पद ३, दीक्षाएँ १४ (सं० १९९८ में ८, सं० २००१ में ४, सं० २००७ में २), शान्ति पूजा १५, मण्डल पूजा ९, उद्यापन ५ सम्पन्न हुए।
आपके चातुर्मास सं० १९९९ से २००१ बीकानेर, २००२ अजीमगंज, २००३ जीयागंज, २००४५ धमतरी, २००६-८ कलकत्ता, २००९ बीकानेर, २०१०-११ नागपुर, २०१२ रायपुर, २०१३ कलकत्ता, २०१४ उज्जैन, २०१५ इन्दौर, २०१६ जीयागंज, २०१७ अजीमगंज, २०१८ इन्दौर, २०१९ मद्रास व सं० २०२० उज्जैन में हुए। उज्जैन चातुर्मास में रक्तचाप की व्याधि बढ़ गई। अन्त में बीकानेर आदि स्थानों से होते हुए रेल दादाजी में विराजे । आहार-पानी, औषधि आदि का त्याग कर बड़ा उपाश्रय पधारे और सं० २०२० प्रथम कार्तिक अमावस्या के उषा काल में सुदि १ को प्रातः ५ बजे भौतिक शरीर त्याग कर स्वर्गवासी हुए।
आपश्री ने अपने पूर्वाचार्यों द्वारा संगृहीत श्री जिनचारित्रसूरि ज्ञान भंडार को सन् १९६२ ता० १४ मई को पुरातत्त्वाचार्य श्री जिनविजय जी "पद्मश्री" की प्रेरणा से राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान (बीकानेर शाखा) को भेंट कर दिया। साथ ही साथ उ० श्री जयचन्द्र जी का ज्ञान भंडार, भीनासर के यति सुमेरमल जी का संग्रह, विवेक वर्द्धन संग्रह, आर्या मगनश्री जी व यति हिम्मतविजय जी का संग्रह भी श्रीपूज्य जी महाराज की प्रेरणा से प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान को प्राप्त हो गए जो बीकानेर स्टेडियम ग्राउण्ड स्थित भवन में है। यहाँ २१ हजार हस्तलिखित ग्रंथों का अनुपम संग्रह है।
(२५८)
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org